________________
महाभाष्य के टीकाकार
३६५
होता है कि उसने भर्तृहरि का कोई ग्रन्थ नहीं देखा था। भर्तृहरि विरचित-ग्रन्थों के विषय में उसका दिया हुआ परिचय अत्यन्त भ्रमपूर्ण है।
अनेक भर्तृहरि हमारा विचार है कि भर्तृहरि नाम के अनेक व्यक्ति हो चुके हैं। ५ उन का ठीक-ठीक विभाग ज्ञात न होने से इतिहास में अनेक उलझनें पड़ी हैं। विक्रमादित्य, सातवाहन, कालिदास और भोज आदि के विषय में भी ऐसी ही अनेक उलझनें हैं। पाश्चात्त्य विद्वान् उन उलझनों को सुलझाने का प्रयत्न नहीं करते, किन्तु अपनी मनमानी कल्पना के अनुसार काल निर्धारण करके उन्हें और अधिक उलझा देते हैं। और १० उन के मत में जो बाधक प्रमाण उपस्थित होते हैं उन्हें अप्रामाणिक कह कर टाल देते हैं । भर्तृहरि नाम का एक व्यक्ति हुआ है वा अनेक, अब इस के विषय में विचार करते हैं। इस के लिये यह आवश्यक है कि भर्तृहरि के नाम से प्रसिद्ध ग्रन्थों पर पहले विचार किया जाये।
भर्तृहरि-विरचित ग्रन्थ संस्कृत वाङमय में भर्तृहरि-विरचित निम्न ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं१. महाभाष्य-दीपिका । २. वाक्यपदीय काण्ड १, २, ३ । ३. वाक्यपदीय काण्ड १, २ को स्वोपज्ञटोका। ४. भट्टिकाव्य। ५. भागवृत्ति । ६. शतक त्रय-नीति, शगार, वैराग्य (तथा 'विज्ञान' भी)। इनके अतिरिक्त भर्तृहरि-विरचित तीन ग्रन्थ और ज्ञात हुए
हैं
.७. मीमांसाभाष्य ८. वेदान्तसूत्रवृत्ति
२५ • शब्दधातुसमीक्षा १०. षष्ठीश्रावी भर्तृहरिवृत्ति।' भर्तृहरि विषयक उलझन को सुलझाने के लिये हमें इन ग्रन्थों की अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग परीक्षा करनी होगी।
१. यह ग्रन्थ कुछ समय पूर्व ही प्रकाशन में पाया है। अभी इसका भर्तृहरिकृतत्व संदिग्ध है।
. २. कोशकल्पतरु, पृष्ठ ६५। ३०