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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
१३-काशो के समीपवर्ती चुनारगढ़ के किले में भर्तृहरि की एक गुफा विद्यमान है। यह किला विक्रमादित्य का बनाया हुना है, ऐसी वहां प्रसिद्धि है । इसी प्रकार विक्रम की राजधानी उज्जैन में भी
भर्तृहरि की गुफा प्रसिद्ध है। इससे प्रतीत होता है कि भर्तृहरि पौर ५ विक्रमादित्य का कुछ पारस्परिक सम्बन्ध अवश्य था।
१४-प्रबन्ध-चिन्तामणि में भर्तृहरि को महाराज शूद्रक का भाई लिखा है ।' महाराजाधिराज समुद्रगुप्त विरचित कृष्णचरित के अनुसार शूद्रक किसी विक्रम संवत् का प्रवर्तक था।' पण्डित
भगवद्दत जी ने अनेक प्रमाणों से शूद्रक का काल विक्रम से लगभग १० ५०० वर्ष पूर्व निश्चित किया है। देखो भारतवर्ष का इतिहास पृष्ठ २६१-३०५ द्वितीय संस्करण । .
१५-श्री चन्द्रकान्त बाली (देहली) ने ११-७-६३ ई० के पत्र में लिखा है कि विक्रमादित्य और शूद्रक दोनों भाई थे। दोनों ही संवत्
प्रवर्तक थे। विक्रमादित्य का समय ६६ ई० सन् और शूद्रक का ७८ १५ ई० सन् काल है । अतः भर्तृहरि का काल ६०-७० ईस्वी है।
___ इन सब प्रमाणों पर विचार करने से प्रतीत होता है कि भर्तृहरि निश्चय ही बहुत प्राचीन ग्रन्थकार है। जो लोग इत्सिग के वचनानुसार इसे विक्रम की सातवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मानते हैं, वे भूल करते हैं । यदि किन्हीं प्रमाणान्तरों से योरोपियन विद्वानों द्वारा निर्धारित चोनी-यात्रियों की तिथियां पीछे हट जावें तो इस प्रकार के विरोध अनायास दूर हो सकते हैं । अन्यथा इत्सिग का वचन अप्रामाणिक मानना होगा। भर्तृहरिविषयक इत्सिंग की एक भूल का निर्देश पूर्व कराया जा चुका है । इत्सिंग के वर्णन को पढ़ने से प्रतीत
१. पृष्ठ १५१ । २. वत्सरं स्वं शकान् जित्वा प्रावर्तयत वैक्रमम् । राजकविवर्णन ११ । ३. भारतवर्ष का बृहद् इतिहास, भाग २, पृष्ठ २६१-३०५। ४. विक्रमादित्यपर्यायः महेन्द्रादित्यसम्भवः' ।
असो विषमशीलोऽपि साहसाङ्कः शकोत्तरः ॥ १. विक्रमादित्यः विषमादित्यः। २. कथाग्रन्थेषु विक्रमस्य पितुर्नाम महेन्द्रादित्यः श्रूयते । ३. साहसाङ्कः शकोत्तर:तस्य लघुभ्राता विक्रमाङ्कः । यह उक्त पत्र में ही टिप्पणी है ।