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________________ ३६१ महाभाष्य के टीकाकार पूर्व माननी होगी। धर्मपाल की मृत्यु संवत ६२७ वि० (सन् ५७०) में हो गई थी।' अतः वाक्यपदीय की रचना निश्चय ही संवत् ६०० से पूर्व हुई होगी। __-अष्टाङ्गसंग्रह का टीकाकार वाग्भट्ट का साक्षात् शिष्य इन्दु उत्तरतन्त्र अ० ५० की टीका में लिखता है पदार्थयोजनास्तु व्युत्पन्नानां प्रसिद्ध एवेत्यत प्राचार्येण नोक्ताः । तासु च तत्र भवतो हरेः श्लोको संसर्गो विप्रयोगश्च साहचर्य विरोधिता। अर्थः प्रकरणं लिङ्ग शब्दस्यान्यस्य सन्निधिः ॥ सामर्थ्यमौचितिर्देशः कालो व्यक्तिः स्वरादयः । शब्दार्थस्यानवच्छेदे विशेषस्मृतिहेतवः ॥ अनयोरर्थः । इनमें प्रथम कारिका भर्तृहरिविरचित वाक्यपदीव २।३१७ में उपलब्ध होती है। दूसरी कारिका यद्यपि काशीसंस्करण में उपलब्ध नहीं होती, तथापि प्रथम कारिका की पुण्यराज की टीका पृष्ठ २१६ पंक्ति १६ में द्वितीय कारिका की व्याख्या छपी हुई है । इस से प्रतीत १५ होता है कि द्वितीय कारिका मुद्रित ग्रन्थ में टूट गई है । वाक्यपदीय के कई हस्तलेखों तथा इसके नये संस्करणों में द्वितीय कारिका भी विद्यमान है । वाग्भट्ट का काल प्रायः निश्चित सा है । अष्टाङ्गसंग्रह उत्तरतन्त्र अ० ४६ के पलाण्डु रसायन प्रकरण में लिखा है-- रसोनानन्तरं वायोः पलाण्डुः परमौषधम् । साक्षादिव स्थितं यत्र शकाधिपतिजीवितम् ॥ यस्योपयोगेन शकाङ्गनानां लावण्यसारादिव निर्मितानाम् । कपोलकान्त्या विजितः शशाङ्को रसातलं गच्छति निविदेव ।। इस श्लोक के आधार पर अनेक ऐतिहासिक वाग्भट्ट को चन्द्रगुप्त २५ द्वितीय के काल में मानते हैं। पाश्चात्त्य ऐतिहासिक चन्द्रगुप्त द्वितीय का काल विक्रम संवत् ४३७-४७० तक स्थिर करते है । पं० भगवद्दत्त 1. Introduction to Vaisheshilks philosophy according to the Dashapadarthi Shastra-By H. U. I. 1917 P. 10. २. अष्टाङ्गहृदय की भूमिका पृष्ठ १४, १५ निर्णयसागर संस्क०। ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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