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________________ ३८८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ३-कातन्त्र व्याकरण की दुर्गसिंहकृत वृत्ति काशिका से प्राचीन है। धातुवृत्तिकार सायण के मतानुसार वामन ने काशिका ७।४।१३ में दुर्गवृत्ति का प्रत्याख्यान किया है।' दुर्गसिंह कातन्त्र १२१२६ को वृत्ति में लिखता हैतथा चोक्तम्-यावसिद्धमसिद्धं वा साध्यत्वेन प्रतीयते । प्राश्रितक्रमरूपत्वात् सा क्रियेत्यभिधीयते ॥ यह कारिका वाक्यपदीय की है।' दुर्गसिंह पुनः ३।२।४१ की वृत्ति में वाक्यपदीय की एक कारिका उद्धृत करता है । अतः भर्तृ. हरि काशिका से पूर्वभावी दुर्गसिंह से भी पूर्ववर्ती है । ४-शतपथ ब्राह्मण का व्याख्याता हरिस्वामी प्रथम काण्ड की व्याख्या में वाक्यपदीय के प्रथम श्लोक के उत्तरार्ध के एकदेश को उद्धृत करता है-अन्ये तु शब्दब्रह्म वेदं विवर्तते अर्थभावेन प्रक्रिया इत्यत प्राहुः। हरिस्वामी अपनी शतपथ-व्याख्या के प्रथम काण्ड के अन्त में . १५ लिखता है श्रीमतोऽवन्तिनाथस्य विक्रमार्कस्य भूपतेः । धर्माध्यक्षो हरिस्वामी व्याख्यच्छातपथीं श्रुतिम् ।। यदाब्दानां कलेर्जग्मुः सप्तत्रिंशच्छतानि वै॥ चत्वारिंशत् समाश्चान्यास्तदा भाष्यमिदं कृतम् ॥ २० द्वितीय श्लोक के अनुसार कलि संवत् ३७४० अर्थात् वि० सं० ६९५ में हरिस्वामी ने शतपथ प्रथम काण्ड की रचना की । अभीअभी ग्वालियर से प्रकाशित विक्रम-द्विसहस्राब्दी स्मारक ग्रन्थ में पं० सदाशिव लक्ष्मीधर कात्रे का एक लेख मुद्रित हुअा है, उसमें पूर्वोक्त १. यत्तु कातन्त्र मतान्तरेणोक्तम्-इत्त्वदीर्घयोः अजीजागरत् इति भव२५ तीति, तदप्येदं प्रत्युक्तम् । वृत्तिकारात्रेयवर्धमानादिभिरप्येतद् दूषितम् पृ. २६६ । २. काण्ड ३, क्रियासमुद्देश कारिका १ । वाक्यपदीय में द्वितीय चरण का 'साध्यत्वेनाभिधीयते' और चतुर्थ चरण का 'सा क्रियेति प्रतीयते' पाठ है। ३. क्रियमाणं तु यत्कर्म स्वयमेव प्रसिद्धयति । सुकरैः स्वगुणैः कर्तुः कर्मकर्तेति तद्विदुः ॥ ३ ४. विवर्ततेऽर्थभावेन प्रक्रिया जगतो यतः । यह उत्तरार्ध का पूरा पाठ है।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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