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महाभाष्य के टीकाकार
३८७ बौद्धैरपि अध्यवसायापेक्षं प्रकाशस्य प्रामाण्यं वदभिरुपगतप्रायएवायमर्थः ।
इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि भर्तृहरि बौद्धमतावलम्बी नहीं था । हमारे मित्र डा० श्री के० माधवशर्मा का भी यही मत है।' इत्सिग को यह भ्रान्ति क्यों हुई, इसका निरूपण हम आगे करगे ।
काल भर्तृहरि का काल अभी तक विवादास्पद है। कई विद्वान् इत्सिग के लेखानुसार भर्तृहरि का काल विक्रम की सप्तम शताब्दी का उत्तरार्घ मानते हैं । अब अनेक विद्वान् इत्सिग के लेख को भ्रमपूर्ण मानने लगे हैं। भारतीय जनश्रुति के अनुसार भतृहरि महाराज विक्रमादित्य १० का सदोहर भ्राता है। इसमें कोई विशिष्ट साधक बाधक प्रमाण नहीं हैं । अतः हम गन्थान्तरों में उपलब्ध उद्धरणों के आधार पर ही भर्तृहरि के काल-निर्णय का प्रयत्न करते हैं
१-प्रसिद्ध बौद्ध चीनी यात्री इत्सिग लिखता है-'उस (भर्तृहरि) की मृत्यु हुऐ चालीस वर्ष हुए।"
ऐतिहासिकों के मतानुसार इत्सिग ने अपना भारतयात्रा-वृत्तान्त विक्रम संवत् ७४६ के लगभग लिखा था। तदनुसार भर्तृहरि की मृत्यु संवत् ७०८,७०६ के लगभग माननी होगी।
२-काशिका ४।३।८८ के उदाहरणों में भर्तृहरिकृत 'वाक्य'. पदीय' ग्रन्थ का उल्लेख है । काशिका की रचना सं०६८०, ७०१ के २० मध्य हुई थी, यह हम 'अष्टाध्यायी के वृत्तिकार' प्रकरण में सप्रमाण । लिखेंगे। कन्नड पञ्चतन्त्र के अनुसार जयादित्य और वामन गुप्तवंशीय विक्रमाङ्क साहसाङ्क के समकालिक हैं । यह गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय है। पाश्चात्त्य मतानुसार इसका काल वि० सं० ४६७. ४७० तक माना जाता है। फिर भी उक्त निर्देश से इतना स्पष्ट है २५ कि वाक्यपदीय ग्रन्थ काशिका से पूर्व लिखा गया है।
१. भर्तृहरि नाट बुद्धिष्ट' दि पूना अोरियण्टलिस्ट, अप्रैल १९४० । हमारे इन आदरणीय मित्र महानुभाव का सं० २०२६ (सन् १९६६) में स्वर्गवास हो गया।
२. इत्सिग की भारतयात्रा पृष्ठ २७५ । ३. विशेष देखें अष्टाध्यायी के वृत्तिकार नामक १४ वें अध्याय में काशिका , के प्रकरण में ।