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ग्यारहवां
अध्याय
महाभाष्य के टीकाकार
महाभाष्य पर अनेक विद्वानों ने टीकाएं लिखी हैं । उनमें से अनेक टीकाएं संप्रति अनुपलब्ध हैं। बहुत से टीकाकारों के नाम भी ज्ञात हैं । महाभाष्य पर रची गई जितनी टीकाओं का हमें ज्ञान हो ५ सका, उनका संक्षिप्त वर्णन हम आगे करते हैं
भतृहरि से प्राचीन टीकाएं
भर्तृहरि - विरचितं महाभाष्य की टीका का जितना भाग इस समय उपलब्ध है, उसके अवलोकन से ज्ञात होता है कि उससे पूर्व भी महाभाष्य पर अनेक टीकाएं लिखी गई थीं । भर्तृहरि ने अपनी टीका १० में 'अन्ये, परे, केचित्' आदि शब्दों द्वारा अनेक प्राचीन टीका के पाठ उद्धृत किये है |' परन्तु टीकाकारों के नाम अज्ञात होने से उनका वर्णन सम्भव नहीं है । भर्तृहरि विरचित महाभाष्यटीका के अवलोकन से हम इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि उससे पूर्व महाभाष्य पर न्यूनातिन्यून तीन टीकाएं अवश्य लिखी गई थीं । यदि महाभाष्य १५ की ये प्राचीन टीकाएं उपलब्ध होतीं, तो अनेक ऐतिहासिक भ्रम अनायास दूर हो जाते ।
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भर्तृहरि (वि० सं० ४०० से पूत्र )
महाभाष्य की उपलब्ध तथा ज्ञात टीकाओं में भर्तृहरि की टीका सब से प्राचीन और प्रामाणिक है । वैयाकरण- निकाय में पतञ्जलि २० के अनन्तर भर्तृहरि ही ऐसा व्यक्ति है, जिसे सब वैयाकरण प्रमाण मानते हैं ।
परिचय
भर्तृहरि ने अपने किसी ग्रन्थ में अपना कोई परिचय नहीं दिया अतः भर्तृहरि के विषय में हमारा ज्ञान अत्यल्प है ।
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१. हस्तलेख की पृष्ठ संख्या - प्रन्ये ४, ५७, ७०, १५४ ( पूना सं० ४, ४८, ६०, ११८) इत्यादि । अपरे ७०, ७६, १७६ ( पूना सं० ६०, ६४, १३६) इत्यादि । केचित् ४, ६१, १६७, १७६ ( पूना सं० ३, ५१, १२७, १३६) इत्यादि ।