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संस्कृत व्याकरण का इतिहास
है । कैयट 'महाभाष्य' ४।२।६३ के प्रदीप में पतञ्जलि को नागनाथ के नाम से स्मरण करता है।' चक्रपाणि 'चरकटीका' के आदि में पतञ्जलि का अहिपति नाम से निर्देश करता है। अतः शेष, वासुकि, भोगोन्द्र, फणिपति, अहिपति और नागनाथ प्रादि सब नाम पर्याय हैं। अनेक ग्रन्थकार पतञ्जलि को पदकार के नाम से स्मरण करते हैं।' इस से प्रतीत होता है कि पतञ्जलि ने कोई कोष-ग्रन्थ भी रचा था । हेमचन्द्र द्वारा अभिधानचिन्तामणि की टीका' (पृष्ठ १०१) में शेष के नाम से उद्धृत पाठ में बुद्ध के पर्यायों का निर्देश उपलब्ध होता है। सम्भव है यह कोष आधुनिक हो।
५-सांख्य-शास्त्र-शेष ने सेश्वर सांख्य का एक कारिकाग्रन्य रचा था । उसका नाम था 'प्रार्यापञ्चाशोति' । अभिनवगुप्त ने इसी में कुछ परिवर्तन करके इसका नाम 'परमार्थसार' रक्खा है । सांख्यकारिका की युक्तिदीपिका-टीका में पतञ्जलि के सांख्यविषयक अनेक
मत उद्धृत हैं। पतञ्जलि का एक मत योगसूत्र के व्यासभाष्य में १५ भी उद्धृत है।
६-साहित्यशास्त्र-गायकवाड़ संस्कृत ग्रन्थमाला में प्रकाशित शारदातनय-विरचित 'भावप्रकाशन' के पृष्ठ ३७, ४७ में वासकिविरचित किसी साहित्यशास्त्र से भावों द्वारा रसोत्पत्ति का उल्लेख उपलब्ध होता है। - ७-लोहशास्त्र-शिवदास ने चक्रदत्त की टीका में पतञ्जलि विरचित 'लोहशास्त्र' का उल्लेख किया है।'
संख्या ५, ६, ७ ग्रन्थों में से कौन-कौनसा ग्रन्थ महाभाष्यकार पतञ्जलि विरचित है, यह अज्ञात है। अब हम अगले अध्याय में महाभाष्य के टीकाकारों का वर्णन करेंगे।
१. पूर्व पृष्ठ ३५७, टि०५। २. पूर्व पृष्ठ ३५७, टि.६। ३. पूर्व पृष्ठ ३५८, टि०७-६; पृष्ठ ३५९, टि. १-३ ।
५. बुद्धे तु भगवान् योगी बुधो विज्ञानदेशनः । महासत्त्वो लोकनाथो बोधिरहन सुनिश्चित: । गुणाब्धिबिगतद्वन्द्व-..।
५. पूर्व पृष्ठ ३६३, टि० ४। ६. पूर्व पृष्ठ ३६३, टि. २ ।
७. उत्पत्तिस्तु रसानां या पुरा वासुकिनोदिता। नानाद्रव्योषधः पाकैव्यंजनं भाव्यते यथा ॥ एवं भावा भावयन्ति रसानभिनयः सह । इति वासुकिनाप्युक्तो भावेभ्यो रससम्भवः ॥ ८. यदाह पतञ्जलिः-दिव्यं दावं समादाय लोहकर्म समाचरेत्' इति । द्र०-वृद्धत्रयी, पृष्ठ २६ ।