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________________ महाभाष्यकार पतञ्जलि ३८३ पूर्व पृष्ठ ३६४ में उद्धृत श्लोकों से भी प्रतीत होता है कि महाभाष्यकार पतञ्जलि ने चरक-संहिता में कुछ धर्माविरुद्ध योगों का सनिवेश किया था। चरक संहिता के प्रत्येक स्थान के अन्त में लिखा है-'अग्निवेशकृते तन्त्रे चरकप्रतिसंस्कृते ।' क्या चरक पतञ्जलि का ही नामान्तर है ? ___ हमने पूर्व पृष्ठ ३६२ महाभाष्य में उद्धृत कुछ वैदिक पाठों की सम्प्रति उपलभ्यमान शाखाओं के पाठों से तुलना प्रस्तुत की है । उससे हम इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि पतञ्जलि का संबन्ध कृष्णयजुर्वेदीय काठक-संहिता के साथ था । काठक-संहिता 'चरक' चरणान्तर्गत है । अतः उसका 'चरक' चरण होने से उसे 'चरक' कह १० सकते हैं।' श्री पं० गुरुपद हालदार ने 'वृद्धत्रयी' में लिखा है कि-पतञ्जलि ने आयुर्वेदीय चरक-संहिता पर कोई वार्तिक ग्रन्थ लिखा था।' इस वार्तिक का कर्ता महाभाष्यकार पतञ्जलि है। पण्डित गुरुपद हालदार ने रस-रसायन-धातु-व्यायार-विषयक पतञ्जलि के कई १५ वचन भी उधृत किये हैं।' ३- सिद्धान्त-सारावली-वातस्कन्धपैत्तस्कन्धोपेत-सिद्धान्तसारा.वली नामक वैद्यक ग्रन्थ पतञ्जलि-विरचित है, ऐसा पं० गुरुपद हालदार ने लिखा है। __४-कोष-कोष-ग्रन्थों की अनेक टीकानों में वासुकि, शेष, २० भोगीन्द्र, फणिपति आदि नामों से किसी कोष-ग्रन्थ के उद्धरण उपलब्ध होते हैं। हेमचन्द्र अपने 'अभिधानचिन्तामणि कोष की टोका' के प्रारम्भ में अन्य कोषकारों के साथ वासुकि का निर्देश करता है। परन्तु ग्रन्थ में उस के अनेक पाठ शेष के नाम से उधत करता है। अतः शेष और वासुकि दोनों एक हैं। 'विश्वप्रकाश कोष' के प्रारम्भ २५ (१।१६, १९) में भोगीन्द्र और फणिपति दोनों नाम मिलते हैं । राघव 'नानार्थमञ्जरी' के प्रारम्भ में शेषकार का नाम उद्धृत करता १. द्र०—कठचरकाल्लुक् (अष्टा० ४।३।१०७) चरकप्रोक्तां संहिताम् प्रधीयते विदन्ति वा ते चरकाः। २. वृद्धत्रयी, पृष्ठ २६.३१ ॥ ३. वृद्धत्रयी, पृ० २६, ३० । । ४. वृद्धत्रयी, पृष्ठ २६ । ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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