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________________ ३८२ संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास ' अर्थात्-महाभाष्य में 'नायं प्रसज्यप्रतिषेधः' पाठ लेखक-प्रमाद से नष्ट हो गया, अर्थात् अपभ्रष्ट हो गया । - ५–वाक्यपदीय २४२ की स्वोपज्ञ व्याख्या में भर्तृहरि भाष्य के नाम से एक लम्बा पाठ उदधृत करता है। यह पाठ महाभाष्य में ५. सम्प्रति उपलब्ध नहीं होता ।' । इन कतिपय उद्धरणों से स्पष्ट है कि महाभाष्य का जो पाठ सम्प्रति उपलब्ध होता है, वह कई स्थानों पर खण्डित है । - महाभाष्य का प्रकाशन यद्यपि कई स्थानों से हुआ है, तथापि इसका अभी तक जैसा उत्कृष्ट परिशुद्ध संस्करण होना चाहिये, वैसा प्रकाशित नहीं हुआ। डा. कीलहान का संस्करण हो इस समय सर्वोत्कृष्ट है । परन्तु उस में अभी संशोधन की पर्याप्त अपेक्षा है । डा० कीलहान के अनन्तर महाभाष्य के अनेक प्राचीन हस्तलेख और टीकायें उपलब्ध हो गई हैं, उनका भी पूरा-पूरा उपयोग नये संस्करण में होना चाहिये। ___ अन्य ग्रन्थ - हम प्रारम्भ में लिख चुके हैं कि पतञ्जलि के नाम से सम्प्रति तीन ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं–निदानसूत्र, योगदर्शन और महाभाष्य । इनमें से निदानसूत्र और योगदर्शन दोनों किसी प्राचीन पतञ्जलि की रचनायें हैं। १-महानन्द काव्य -महाराजा समुद्रगुप्त विरचितं कृष्णचरित के तीन पद्य हमने पूर्व पृष्ठ ३६४ में उद्धृत किये हैं। उनसे विदित होता है कि महाभाष्यकार पतञ्जलि ने 'महानन्द' वा 'महानन्दमय' नाम महाकाव्य रचा था। इस काव्य में पतञ्जलि ने काव्य के मिष से योग की व्याख्या की थी। इस ‘महानन्द' काव्य का मगध२५ सम्राट् महानन्द से कोई सम्बन्ध नहीं था। ..२-चरक का परिष्कार-हम पूर्व लिख चुके हैं कि चक्रपाणि, पुण्यराज और भोजदेव आदि अनेक ग्रन्थकार पतञ्जलि को चरकसंहिता का प्रति संस्कारक मानते हैं । समुद्रगुप्तविरचित कृष्गवरित के १. स चायं वाक्यपदयोराधिक्ययोर्भेदो भाष्य एवोपव्याख्यातः । अतश्च 10 तत्र भवान् माह-पथैकपदगतप्रातिपदिके हेतुराख्यायते। .....
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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