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________________ महाभाष्यकार पतञ्जलि ३७७ इस विवेचना का सार यही है कि महाभाष्य के चन्द्रगोमी द्वारा परिष्कृत वर्तमान पाठ के आधार पर भाष्यकार पतञ्जलि के काल का निर्धारण करना अन्याय्य है । यदि हमारे द्वारा प्रदर्शित २००० वि० पूर्व काल न भी माना जाये, और शुङ्गवंशीय पुष्यमित्र का समकालिक ही माना जाये, तब भी वह विक्रम पूर्व १२०० वर्ष से ५ उत्तरवर्ती नहीं हो सकता । पाश्चात्त्य विद्वानों का पुष्यमित्र को १५० वर्ष ईसा पूर्व में रखना सर्वथा भारतीय सत्य ऐतिहासिक काल-गणना के विपरीत है। निश्चय ही पाश्चात्त्य विद्वानों द्वारा निर्धारित भारत के प्राचीन इतिहास की रूपरेखा ईसाईयत के पक्षपात और राजनैतिक दुरभिसन्धि के कारण वड़े प्रयत्न से निर्मित है । अतः वह प्रांख मूद १० कर किसी विज्ञ भारतीय द्वारा स्वीकृत नहीं की जा सकती। उसे अपरीक्षित-कारक के समान स्वीकार करना भारतीय ज्ञान-विज्ञान और स्वीय सामर्थ्य का अपमान करना है । महाभाष्य की रचनाशली यद्यपि महाभाष्य व्याकरणशास्त्र का ग्रन्थ है, तथापि अन्य व्याक- १५ रण ग्रन्थों के सदश वह शुष्क और एकाङ्गी नहीं हैं । इस में व्याकरण जैसे क्लिष्ट और शुष्क विषय को अत्यन्त सरल और रसस ढंग से हृदयंगम कराया है। इसकी भाषा लम्बे-लम्बे समासों से रहित, छोटे-छोटे वाक्यों से युक्त, अत्यन्त सरल, परन्तु बहुत प्राञ्जल और सरस है। कोई भी असंस्कृतज्ञ व्यक्ति दो तीन मास के परिश्रम से २० इसे समझने योग्य संस्कृत सीख सकता है । लेखनशैली को दृष्टि से यह ग्रन्थ संस्कृत-वाङमय में सब से अद्भुत है। कोई भी अन्य इस की रचना-शैली की समता नहीं कर सकता । शबर स्वामी ने महाभाष्य के प्रादर्श पर अपना मीमांसा-भाष्य लिखने का प्रयास किया, परन्तु उसकी भाषा इतनी प्राञ्जल नहीं है, वाक्यरचना लड़खड़ाती २५ है, और अनेक स्थानों में उसकी भाषा अपने भाव को व्यक्त करने में असमर्थ हैं। स्वामी शंकराचार्यकृत वेदान्तभाष्य की भाषा यद्यपि प्राञ्जल और भाव व्यक्त करने में समर्थ है, तथापि महाभाष्य जैसी सरल और स्वाभाविक नहीं है । चरक-संहिता के गद्यभाग की भाषा यद्यपि महाभाष्य जैसी सरल प्राञ्जल और स्वाभाविक है, तथापि ३० उसकी विषय-प्रतिपादन शैली महाभाष्य जैसी उत्कृष्ट नहीं है । अतः
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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