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________________ ३७६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास सम्पन्न हुअा है, परन्तु इसे व्यास-विरचित ही कहा जाता है । वाल्मीकि रामायण के तीन पाठ सम्प्रति प्रत्यक्ष हैं, ये परिष्कार भेद से सम्पन्न हुए हैं, परन्तु तीनों वाल्मोकि-विरचित कहे जाते हैं । चरक-संहिता के भी ३-४ वार परिष्कार हुये। इसी प्रकार अन्य ग्रन्थों की भी व्यवस्था समझनी चाहिये। महाभाष्य के वर्तमान पाठ का परिष्कारक -महाभाष्य का वर्तमान में जो पाठ मिलता है, उसका प्रधान परिष्कारक है प्राचार्य चन्द्रगोमी । भर्तृहरि और कल्हण के प्रमाण हम पूर्व पृष्ठ (३६८, टि. २) पर उद्धृत कर चुके हैं, और अनुपद पुनः उद्धृत करेंगे । उनसे १० स्पष्ट है कि कश्मीराधिपति महाराज अभिमन्यु के पूर्व महाभाष्य का न केवल पठन-पाठन ही लुप्त हो गया था, अपितु उसके हस्तलेख भी नष्टप्रायः हो चुके थे। चन्द्राचार्य ने महान् प्रयत्न करके दक्षिण के किसी पार्वत्य प्रदेश से उसका एकमात्र हस्तलेख प्राप्त किया। ग्रन्थ के पठन-पाठन के लुप्त हो जाने से, तथा हस्तलेखों के दुर्लभ १५ हो जाने पर ग्रन्थों की क्या दुर्दशा होतो है, यह किसी भी विज्ञ विद्वान् से छिपी नहीं है। इस प्रकार ग्रन्थ के अव्यवस्थित हो जाने पर उसका पुनः परिष्कार अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। उस परिष्कार में परिष्कर्ता द्वारा नवीन अंशों का समावेश साधारण बात है । इसलिये हमारा दृढ मत है कि महाभाष्य में जो पूर्व-निर्दिष्ट प्रसंग २० आये हैं, वे परिष्कर्ता चन्द्राचार्य द्वारा सन्निविष्ट हये हैं। महाभाष्य कार पतञ्जलि शुङ्गवंशीय पुष्यमित्र से बहुत प्राचीन है, अन्यथा भारतीय ऐतिह्य-परम्परा का महान् ज्ञाता महाराज समुद्रगुप्त अपने कृष्णचरित में पतञ्जलि का वणन महाकवि भास से पूर्व कदापि न करता। १. दृढ़वल ने जब चरक का परिष्कार किया, उस समय चरक के चिकित्सास्थान के १३ वें अध्याय से आगे के ४० अध्याय नष्ट हो चुके थे। उन्हें दडबल के अनेक तन्त्रों के साहाय्य से पूरा किया। परन्तु शैली वही रक्खी, जो ग्रन्य में प्रारम्भ से विद्यमान थी। दृढ़बल स्वयं लिखता है - अतस्तेन्त्रोतमभिदं चरकेणातिबुद्धिना ॥ संस्कृतं तत्त्वसंपूर्ण त्रिभागेनोप30 लक्ष्यते । तच्छेकर भूतपति सम्प्रसाद्य समापयत् ॥ अखण्डा) दृढबलो जातः पञ्चनदे पुरे । सिद्धि० १२ । ६६-६८ ॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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