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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास विभक्तिवचनों में रूप मिलते हैं, तथापि क्वचित् प्रयुक्त नाम और श्राख्यात पदों से मूलभूत शब्दों' की कल्पना करके समस्त व्यवहारोपयोगी नाम प्रख्यात पदों की सृष्टि की गई । शब्दान्तरों में क्वचित् प्रयुक्त विभक्ति - वचनों के अनुसार प्रत्येक नाम और धातु ५. के तत्तद् विभक्ति-वचनों के रूप निर्धारित किये गये । इस प्रकार ऋषियों ने प्रारम्भ में ही वेद के आधार पर सर्वव्यवहारोपयोगी अति विस्तृत भाषा का उपदेश किया । वही भाषा संसार की आदि व्यावहारिक भाषा हुई । वेद स्वयं कहता है - देवीं वाचमजनयन्त देवास्तां विश्वरूपाः पशवो वदन्ति ।' १० अर्थात् - देव जिस दिव्य वाणी को प्रकट करते हैं, साधारण जन उसी को बोलते हैं । लौकिक वैदिक शब्दों का अभेद इस सिद्धान्त के अनुसार प्रतिविस्तृत प्रारम्भिक लौकिक- भाषा में वेद के वे समस्त शब्द विद्यमान थे, जो इस समय केवल वैदिक माने १५ जाते हैं । अर्थात् प्रारम्भ में ' ये शब्द लौकिक हैं, और ये वैदिक' हैं, इस प्रकार का विभाग नहीं था । करण है । उसमें सर्वत्र वैदिक पदों का अन्वाख्यान लौकिक पदों के अन्वाख्यान के पश्चात किया गया है । इसीलिये भट्ट कुमारिल ने लिखा है- 'पाणिनीयादिषु हि वेदस्वरूपवर्जितानि पदान्येव संस्कृत्य संस्कृत्योत्सृज्यन्त े । तन्त्र२० वार्तिक १ । ३ । अधि० ८, पृष्ठ २६५, पूना संस्करण । १. आरम्भ में समस्त शब्द एकविध ही थे । उन्ही का नाम - विभक्तियों से योग होने पर वह 'नाम कहाते थे । और प्रख्यात - विभक्तियों से योग होने पर 'धातु' माने जाते थे (तुलना करो - वर्तमान कण्ड्वादिगणस्थ शब्दों के साथ)। किसी भी विभक्ति का योग न होने पर वे 'अव्यय' बन जाते थे । २५ इस विषय पर विशेष विचार इसी ग्रन्थ के १६ वें अध्याय में किया है । २. ऋ० ८।१००।११ ॥ ३. वेद में पशु शब्द मनुष्य - प्रजा का भी वाचक है । अमवेद में वधू प्रति आशीर्वाद मन्त्र है— 'वितिष्ठन्तां मातुरस्या उपस्थान्नानारूपाः पशवो जायमानाः । अथर्व १४।२।२५ ॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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