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________________ ३७२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास Ac यह इतिहास की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना है। इसको सुरक्षित रखने का श्रेय वर्धमान सूरि को है । पाटलिपुत्र के उजड़ने की यह घटना पाणिनि से प्राचीन है, क्योंकि पाणिनि ने ८ । ४ । ४ में साक्षात् पुरगावण का उल्लेख किया है। सम्भव है, इसलिये महाभारत आदि में पाटलिपुत्र का वर्णन नहीं मिलता। इससे स्पष्ट है कि पाटलिपुत्र को उदयो ने ही नहीं बसाया था। वह प्राचीन नगर है, और कई बार उजड़ा और कई बार बसा । भगवान् तथागत के समय पाटली ग्राम को विद्यमानता भी इसी को पुष्ट करती है। अतः महाभाष्य में पाटलिपुत्र का उल्लेख होने मात्र से वह उदयी के अनन्तर नहीं हो १० सकता। पूर्व उद्धरणों पर भिन्नरूप से विचार १-महाभाष्य में कहीं पर भी पुष्यमित्र का शुङ्ग वा राजा विशेषण उपलब्ध नहीं हो सकता, और न कहीं पुष्यमित्र के अश्वमेध करने का ही संकेत है । अतः यह नाम भी देवदत्त यज्ञदत्त विष्णुमित्र १५ आदि के तुल्य सामान्य पद नहीं है, इसमें कोई हेतु नहीं। २-यदि 'इह पुष्यमित्रं याजयामः' वाक्य में 'इह पद को पाटलिपुत्र का निर्देशक माना जाये. तो उससे उत्तरवर्ती 'इह अधीमहे वाक्य से मानना होगा कि पतञ्जलि पुष्यमित्र के अश्वमेघ के समय पाटलिपुत्र में अध्ययन कर रहा था। यह अर्थ मानने पर अश्वमेध कराना, और गुरुमुख से अध्ययन करना, दोनों कार्य एक साथ नहीं हो सकते । अतः इन वाक्यों का किसी अथविशेष में संकेत मानना अनुपपन्न होगा। ३–'चन्द्रगुप्तसभा उदाहरण अनेक हस्तलेखों में उपलब्ध नहीं होता, और जिनमें मिलता है, उनमें भी 'पुष्यमित्रसभा' के अनन्तर २५ उपलब्ध होता है। यह पाठक्रम ऐतिहासिक दृष्टि से अयुक्त है। ४-महाभाष्य के पूर्व उद्धृत उद्धरण में 'वृषल' शब्द का बहुप्रसिद्ध अधर्मात्मा अर्थ भी हो सकता है । वृषल का अर्थ केवल चन्द्रगुप्त ही नहीं है। ५-मौर्यवश प्राचीन है, उसका प्रारम्भ चन्द्रगुप्त से ही नहीं ३० १. वनं पुरगामिश्रकासिध्रकासारिकाकोटराग्रेभ्यः । २०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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