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________________ ३७१ महाभाष्यकार पतञ्जलि पर अनुशोण स्थिति उत्पन्न हो सकती है। मुद्राराक्षस नाटक में मौर्य चन्द्रगुप्त के समय पाटलिपुत्र की स्थिति अनुगङ्ग कही है, यह अनुगङ्ग स्थिति उत्तरकूल पर थी, और इस समय भी अनुगङ्ग स्थिति उत्तरकूल पर है। परन्तु महाभाष्यकार पतञ्जलि पाटलिपुत्र को अनुशोण लिखता है। यदि महाभाष्यकार को शुङ्गकाल में माना ५ जाये, तो उसका पाटलिपुत्र को अनुशोण लिखना उपपन्न नहीं हो सकता। अनेक पाटलिपुत्र नागेश महाभाष्य २११११ के 'कूतो भवान पाटलिपुत्रात्' वचन की व्याख्या में लिखता है-कस्मात् पाटलिपुत्राद् भवानागत इत्यर्थः, १० अनेकत्वात् पाटलिपुत्रस्य, तदवयवानां वा प्रश्नः । इससे सन्देह होता है कि पाटलिपुत्र नाम कदाचित् अनेक नगरों का रहा हो। पाटलिपुत्र का अनेक बार बसना पं० सत्यव्रत सामश्रमी ने महावंश नामक बौद्धग्रन्थ के आधार पर लिखा है-'शाक्यमुनि के जीवनकाल में अजातशत्र ने सोन के १५ किनारे पाटली में ग्राम में दुर्गनिर्माण किया, उसे देख कर भगवान् बुद्ध ने भविष्यवाणो की-'यह भविष्य में प्रधान नगर होगा' ।' महाराज अजातशत्रु उदयो का पूर्वज है। इससे स्पष्ट है कि उदयो के कुसुमपुर बसनि से पूर्व कोई पाटली ग्राम विद्यमान था। हमारा विचार है कि पाटलिपुत्र अत्यन्त प्राचीन नगर है, और २० वह इन्द्रप्रस्थ के समान अनेक बार उजड़ा और बसा है। पाणिनि से पूर्व पाटलिपुत्र का उजड़ना, पाटलिपुत्र पाणिनि से बहुत प्राचीन नगर है। वह पाणिनि से पूर्व एक बार उजड़ चुका था। गणरत्नमहोदधि में वर्धमान लिखता हैं'पुरगा नाम काचिद् राक्षसी तया भक्षितं पाटलिपुत्रम्, तस्या २५ निवासः। . अर्थात् किसी पुरगा नाम की राक्षसी ने पाटलिपुत्र को उजाड़ दिया था। १. निरुक्तालोचन पृष्ठ ७१। २. पृष्ठ १७६ । ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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