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महाभाष्यकार पतञ्जलि
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की मृत्यु से ठीक ४०० वर्ष पीछे कनिष्क संपूर्ण जम्बू द्वीप का सम्राट बना। चीनी ग्रन्थकार बुद्धनिर्वाण की विक्रम से १००-१५०० वर्ष पूर्व अनेक विभिन्न तिथियां मानते हैं। कल्हणविरचित राजतरङ्गिणो के अनुसार अभिमन्यु से प्रतापादित्य तक २१ राजा हुए (कई प्रतापादित्य को विक्रमादित्य मानते हैं)। राजतरङ्गिणी के अनुसार इन' ५ का राज्यकाल १०१४ वर्ष ६ मास ६ दिन का था । कल्हण के लेखानुसार विक्रमादित्य ने मातृगुप्त को कश्मीर का राजा बनाया था। मातृगूप्त अभिमन्यु से ३१ पीढ़ी पश्चात् हुमा है । उसका काल अभिमन्यु से १३०० वर्षे ११ मास और ६ दिन उत्तरवर्ती हैं। कल्हण ने प्राचीन ऐतिहासिक आधार पर प्रत्येक राजा का वर्ष, मास और १० दिनों तक की पूरी-पूरी संख्या दी है । अतः उस के काल को सहसा अप्रामाणिक नहीं कहा जा सकता। पाश्चात्त्य ऐतिहासिकों ने अभिमन्यु का काल बहुत अर्वाचीन और भिन्न-भिन्न माना है । बिल्फर्ड ४२३ वर्ष ईसापूर्व, बोथलिंग १०० वर्ष ईसापूर्व, प्रिंसिप् ७३ वर्ष ईसापूर्व, लासेन ४० वर्ष ईसापश्चात्, और स्टाईन ४००-५०० १५ वर्ष ईसा पश्चात अभिमन्यु को रखते हैं।' पाश्चात्त्य विद्वानों द्वारा निर्धारित कालक्रम की अपेक्षा भारतीय पौराणिक और राजतरङ्गिणी की कालगणना अधिक विश्वासनीय है । राजतरङ्गिणी की कालगणना में थोड़ी सी भूल है, यदि उसे दूर कर दिया जाए, तो दोनों गणनाएं लगभग समान हो जाती हैं।
चन्द्राचार्य के कालनिर्णय में एक बात और ध्यान में रखनी चाहिए। वह है चान्द्रव्याकरण १।२।८१ का उदाहरण-अजयत जों हूणान् अर्थात् जर्त ने हूणों को जीता । जत एक सीमान्त की पुरानी जाति है । महाभारत सभा पूर्व ४७।२६ में जर्तों के लिए लोमशाः 'शृङ्गिणो नराः' प्रयोग मिलता है। दुर्गसिंह ने उणादि २१६८ की २५ वृत्ति में 'जतः दीर्घरोमा लिखा है । वर्धमान गणरत्नमहोदधि कारिका २०१ में 'शक' और 'खस' के साथ 'जत' शब्द पढ़ता है। हेमचन्द्र उणादिवृत्ति (सूत्र २००) में जर्त का अर्थ राजा करता है।
१. निरुक्तालोचना पृष्ठ ६५ द्रष्टव्य ।
२. 'जत' शब्द का निर्देश पञ्च० उ० ५।४६ तथा दश० उ० ६।२५ में १० मिलता है।