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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
तथा तदनुयायी भारतीय ऐतिहासिक पुष्यमित्र का काल विक्रम से लगभग १५० वर्ष पूर्व मानते हैं । परन्तु अनेक प्रमाणों से यह मत युक्त प्रतीत नहीं होता । इस में संशोधन की पर्याप्त आवश्यकता है । भारतीय पौराणिक कालगणनानुसार पुष्यमित्र का काल विक्रम से ५ लगभग १२०० वर्ष पूर्व ठहरता है । चीनी विद्वान् महात्मा बुद्ध का निर्वाण विक्रम से ६०० से १५०० वर्ष पूर्व विभिन्नकालों में मानते हैं । इसी प्रकार जैन ग्रन्थों में महावीर स्वामी के निर्वाण की विभिन्न तिथियां उपलब्ध होती हैं ।' अतः विना विशेष परीक्षा किये पाश्चात्त्य ऐतिहासिकों द्वारा निर्धारित कालक्रम माननीय नहीं हो सकता ।
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अब हम महाभाष्यकार के कालनिर्णय के लिये बाह्यसाक्ष्य उपस्थित करते हैं
चन्द्राचार्य द्वारा महाभाष्य का उद्धार
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श्राचार्य भर्तृहरि और कल्हण के लेख से विदित होता है कि चन्द्राचार्य ने विलुप्तप्राय महाभाष्य का पुनरुद्धार किया था । अतः १५ महाभाष्यकार के कालनिर्णय में चन्द्राचार्य का कालज्ञान महान् सहायक है । चन्द्राचार्य का काल भी विवादास्पद है, इसलिये हम प्रथम चन्द्राचार्य के काल के विषय में लिखते हैं
चन्द्राचार्य का काल
कल्हण के लेखानुसार चन्द्राचार्य कश्मीराधिपति महाराज अभि२० मन्यु का समकालिक था। उसके मतानुसार अभिमन्यु कनिष्क का उत्तरवर्ती है । कल्हण ने कनिष्क को बुद्धनिर्वाण के १५० वर्ष पश्चात् लिखा है । बुद्धनिर्वाण के विषय में अनेक मत हैं । कल्हण ने बुद्धनिर्वाण की कौनसी तिथि मान कर कनिष्क को १५० वर्ष पश्चात् लिखा है, यह अज्ञात है। चीनी यात्रो ह्यूनसांग लिखता है - - ' बुद्ध
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१. भारतवर्ष का बृहद् इतिहास, भाग १ पृष्ठ १२१, १२२ ( द्वि० [सं० ) । २. पर्वतादागमं लब्ध्वा भाष्यबीजानुसारिभिः । स नीतो बहुशाखत्वं चन्द्रावार्यादिभिः पुनः ॥ वाक्यपदीय २२४५६ || चन्द्राचार्यादिभिर्लब्ध्वादेशं तस्मात्तदागमम् । प्रवर्तितं महाभाष्यं स्वं च व्याकरणं कृतम् । राजतरङ्गिणी, तरङ्ग १, श्लोक १७६ ॥
३. राजतरङ्गिणी १।१७४, १७६ ॥
४. राजतरङ्गिणी १।१७२॥