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महाभाष्यकार पतञ्जलि
३६७ होने से त्याज्य है। मौर्य क्षत्रिय वंश था।' व्याकरण के नियमानुसार मुरा की संतति मौरेय कहायेगी, मौर्य नहीं। . ___ इस विवेचना से स्पष्ट है कि महाभाष्य के संख्या २, ३ के उद्धरणों में मौर्य बृहद्रथ समकालिक मौर्यकल की हीनता का उल्लेख है। संख्या ४ के उद्धरण में स्पष्ट मौर्यशब्द का उल्लेख है। अतः ५ महाभाष्यकार मौर्य राज्य के अनन्तर हुअा होगा।
३-संख्या ५ में अयोध्या और माध्ममिका नगरी पर किसी यवन के आक्रमण का उल्लेख है। गार्गीसंहिता के अनुसार इस यवनराज का नाम धर्ममीत था। व्याकरण के नियमानुसार 'अरुणत् शब्द का प्रयोगकर्ता भाष्यकार यवनराज धर्ममीत का समकालिक १० होना चाहिये ।
४-संख्या ६-६ चार उद्धरणों में स्पष्ट पुष्यमित्र का उल्लेख है। कई विद्वानों का मत है कि संख्या ८ में महाभाष्यकार के पुष्यमित्रीय अश्वमेध का ऋत्विक् होने का संकेत है। संख्या १० से इस की पुष्टि होती है। इस में क्षत्रिय को यज्ञ कराने की निन्दा की है। १५ पतञ्जलि का यजमान पुष्यमित्र ब्राह्मण वंश का था।
५-महाराज समुद्रगुप्त के कृष्णचरित का अंश हमने पूर्व उद्धृत किया है । उससे ज्ञात होता है कि महामुनि पतञ्जलि ने कोई 'महानन्दमय' काव्य बनाया था। यदि महानन्द शब्द श्लेष से महानन्द पद्म का वाचक हो, तो निश्चय ही पतञ्जलि महानन्द पद्म का २० उत्तरवर्ती होगा। ___ इन प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि महाभाष्यकार पतञ्जलि शुङ्गवंश्य महाराज पुष्यमित्र का समकालीन है।' पाश्चात्य
१. चन्द्रगुप्ताय मौर्यकुलप्रसूताय । कामन्दक नीतिसार की उपाघ्यायनिरपेक्षा टीका । अलवर राजकीय पुस्तकालय सूचीपत्र, परिशिष्ट पृ० ११० । २५
२. अष्टा० ४।१।१२१॥ ३. नागेश उद्धरणान्तर्गत मौर्य पद का अर्थ 'विक्रेतु प्रतिमाशिल्पवन्तः' करता है। ४ यह चित्तौड़गढ़ से ६ मील पूर्वोत्तर दिशा में है। सम्प्रति 'नगरी' नाम से प्रसिद्ध है।
५. परोक्षे च लोकविज्ञाते प्रयोक्त दर्शनविषये । महाभाष्य ३।२।१११॥ ६. यह लोकप्रसिद्ध मतानुसार लिखा है । अपना मत हम आगे लिखेगे। ३०