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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास पुण्यराज' और भोजदेव' आदि अनेक ग्रन्थकार महाभाष्य, योग-सूत्र और चरकसंहिता इन तीनों का कर्ता एक मानते हैं। मैक्समूलर ने षड्गुरुशिष्य का एक पाठ उद्धृत किया है, जिसके अनुसार योगदर्शन
और निदानसूत्र का कर्ता एक व्यक्ति है।' ५ महाराजा समुद्रगुप्त ने अपने कृष्णचरित की प्रस्तावना में पतञ्जलि के लिये लिखा है--
विद्ययोद्रिक्तगुणतया भूमावरतां गतः। पतञ्जलिमुनिवरो नमस्यो विदुषां सदा ॥ कृतं येन व्याकरणभाष्यं वचनशोधनम् । धर्मावियुक्ताश्चरके योगा रोगमुषः कृताः ॥ महानन्दमयं काव्यं योगदर्शनमद्भुतम् ।
योगव्याख्यानभूतं तद् रचितं चित्तदोषहम् ॥ अर्थात् महाभाष्य के रचयिता पतञ्जलि ने चरक में धर्मानुकूल कुछ योग सम्मिलित किये, और योग की विभूतियों का निदर्शक १५ योगव्याख्यानभूत 'महानन्दकाव्य' रचा ।
___ इस वर्णन से स्पष्ट है कि महाभाष्यकार पतञ्जलि का चरकसंहिता और योगदर्शन के साथ कुछ सम्बन्ध अवश्य है । चक्रपाणि आदि ग्रन्थकारों का लेख सर्वथा काल्पनिक नहीं है। हमारा विचार
है कि पातञ्जल शाखा, निदानसूत्र और योगदर्शन का रचयिता पत२० जलि एक ही व्यक्ति है, यह अति प्राचीन ऋषि है । आनिरस
पतञ्जलि का उल्लेख मत्स्य पुराण १६५ । २५ में मिलता है । पाणिनि ने २।४।६६ में उपकादिगण में पतञ्जलि पद पढ़ा है। महाभाष्यकार इनसे भिन्न व्यक्ति है और वह इनकी अपेक्षा अर्वा
चीन है। २५ १. तदेवं ब्रह्मकाण्डे 'कायवाग्बुद्धिविषया ये मलाः' (कारिका १४७)
इत्यादिश्लोकेन भाष्यकारप्रशंसोक्ता । वाक्यपदीयटीका काण्ड २, पृष्ठ २८४ काशी संस्करण । वस्तुतः इस कारिका में भाष्यकार की प्रशंसा का न कोई प्रसङ्ग ही है, और न भर्तृहरि ने अपनी स्वोपशव्याख्या में इसकी भाष्यकार की
प्रशंसापरक व्याख्या ही की है। अतः पुण्यराज की यह अप्रासंगिक क्लिष्ट ३० कल्पना है।
२. पूर्व पृष्ठ ३५७ टि०७। ३. योगाचार्यः स्वयं कर्ता योगशास्त्रनिदानयोः। A. L. S. पृष्ठ २३६ में उद्धृत । ४. कपितरः स्वस्तितरो दाक्षिः शक्तिः पतञ्जलिः ।