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________________ महाभाष्यकार पतञ्जलि । ३६३ पैप्पलाद संहिता का भी प्रचार क्षेत्र कश्मोर ही रहा है । इस से यह भी स्पष्ट हो जाता है महाभाष्यकार मूलतः कश्मीर के रहने वाले थे। . . पतञ्जलि-चरित-रामभद्र दोक्षित ने एक पतञ्जलि-चरित लिखा है, पर वह ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वथा अप्रामाणिक है। अनेक पतञ्जलि पतञ्जलि-विरचित तीन ग्रन्थ इस समय उपलब्ध हैं-सामवेदीय निदानसूत्र, योगसूत्र और महाभाष्य । सामवेद की एक पातञ्जलशाखा भी थी, इसका निर्देश कई ग्रन्थों में मिलता है।' योगसूत्र के व्यासभाष्य में किसी पतञ्जलि का एक मत उद्धृत है।' वाचस्पतिमिश्र ने न्यायवार्तिकतात्पर्य-टीका में योगदर्शन के व्यासभाष्य ४।१० १० के पाठ को स्वशब्दों में उद्धृत करते हुए पतञ्जलि के नाम से स्मरण किया है। सांख्यकारिका की युक्तिदीपिकाटीका में पतञ्जलि के सांख्यसिद्धान्त-विषयक अनेक मत उद्धृत हैं। आयुर्वेद की चरक-संहिता भी पतञ्जलि द्वारा परिष्कृत मानी जाती है। समुद्रगुप्त-विरचित कृष्णचरित के अनुसार पतञ्जलि ने चरक १५ में कुछ धर्माविरुद्ध योगों का सन्निवेश किया था । चक्रपाणि .१. देखो वैदिक वाङ्मय का इतिहास भाग १, पृष्ठ ३१२ (द्वि० सं०) । १२. अयुतसिद्धावयवभेदानुगतः समूहो द्रव्यमिति पतञ्जलिः । ३॥४४॥ तुलना करो-सेश्वरसांख्यानामाचार्यस्य पतञ्जलेरित्यर्थः । गुणसमूहो द्रव्यमिति पतञ्जलिः' इति योगभाष्ये स्पष्टम् । नागेश उद्योत ४।१॥४॥ ३. यथास्तत्र भवन्तः पतञ्जलिपादा:-'को हि योगप्रभावादृते अगत्स्यइव समुद्रं पिबति स इव च दण्डकारण्यं सृजति' इति । न्या० वा. ता० टीका १३१३१॥ पृष्ठ ९ । तुलना करो व्यासभाष्य ४११०-दण्डकारण्यं च चित्तबलव्यतिरेकेण शरीरेण कर्मणा शून्यं कः कतु मुत्सहेत, समुद्रमगस्त्यवद् वा पिबेत् । हमारे विचार में योगदर्शन का व्यासभाष्य पतञ्जलि प्रोक्त है । व्यास १ शब्द का अर्थ है विस्तृत। इससे यह भी ध्वनित होता है कि पतञ्जलि ने स्वदर्शन पर व्यास (=विस्तृत) तथा समास (=संक्षिप्त) दो भाष्य रचे थे। ४. पृष्ठ ३२, १००, १३६ १४५, १४६, १७५ । ५. धर्मावियुक्ताश्चरके योगा रोगमुषः कृताः । मुनिकविवर्णन । आयुर्वेदीय चरकसंहिता में पतञ्जलि ने योगों का सनिवेश किस प्रकार किया, इसका .. निर्देश हम आगे करेंगे। ६. द्र०-पूर्व पृष्ठ ३५७ टि० ६ ।। २०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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