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________________ भाष्यकार पतञ्जलि ३५७ मिलता है।' गोनर्दीय की भिन्नता और अभिन्नता की सम्भावना का निर्देश हम पूर्व (पृष्ठ ३४७) चुके हैं। गोणिका-पुत्र-महाभाष्य ११४५१ में गोणिकापूत्र का एक मत निर्दिष्ट है । नागेश की व्याख्या से प्रतीत होता है कि कई प्राचीन टीकाकार गोणिकापूत्र का अर्थ यहां पतञ्जलि समझते थे। ५ वात्स्यायन कामसूत्र में भी गोणिका-पुत्र का निर्देश मिलता है। हमारा विचार है कि गोणिकापुत्र पतञ्जलि से पृथक् व्यक्ति है। नागनाथ-कयट ने महाभाष्य ४।२।६३ की व्याख्या में पतञ्जलि के लिये नागनाथ नाम का प्रयोग किया है । ५ अहिपति-चक्रपाणि ने चरक-टीका के प्रारम्भ में अहिपति नाम १० से पतञ्जलि को नमस्कार किया है। फणिभृत्-भोजराज ने योगसूत्र-वृत्ति के प्रारम्भ में फणिभृत् पद से पतञ्जलि का निर्देश किया है। शेषराज-अमरचन्द्र सूरि ने हैम-बृहद्वृत्त्यवचूणि में महाभाष्य का एक पाठ शेषराज के नाम से उद्धृत किया है। १५ शेषाहि-बल्लभदेव ने शिशुपालवध २१११२ की टीका में पतञ्जलि को शेषाहि नाम से स्मरण किया। ___ चूर्णिकार-भर्तृहरिविरचित महाभाष्यदीपिका में तीन वार चर्णिकार पद से पतञ्जलि का उल्लेख मिलता है। सांख्यकारिका की युक्तिदीपिका टीका में महाभाष्य १।४।२१ का वचन चूर्णिकार २० १. पूर्व पृष्ठ ३४७ टि० १। २. उभयथा गोणिकापुत्र इति । - ३. गोणिकापुत्रो भाष्यकार इत्याहुः। ४. पूर्व पृष्ठ ३४८ टि० १। .५. तत्र जात इत्यत्र तु सूत्रेऽस्य लक्षणत्वमाश्रित्यतेषां सिद्धिमधास्यति नागनाथः। ६. पातञ्जलमहाभाष्यचरकप्रतिसंस्कृतैः । मनोवाक्कायदोषाणां हन्त्रे- २५ ऽहिपतये नमः॥ ७. वाक्चेतोवपुषां मलः फणिभृता भत्रैव येनोद्धृतः । . ८. यदाह श्रीशेषराजः-नहि गोधाः सर्पन्तीति सर्पणादहिर्भवति । (महाभाष्य में अनेकत्र यह पाठ है ) ६. पदं शेषाहिविरचितं भाष्यम् । १०. हस्तलेख पृष्ठ १७६, १३६, २१६ । पूना सं० पृष्ठ १३६, १५४, .. १८०॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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