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________________ दशवां अध्याय महाभाष्यकार पतञ्जलि (२००० वि० पू०) महामुनि पतञ्जलि ने पाणिनीय व्याकरण पर एक महती व्याख्या लिखी है । यह संस्कृत वाङमय में महाभाष्य के नाम से प्रसिद्ध है । इस ग्रन्थ में भगवान् पतञ्जलि ने व्याकरण जैसे दुरूह और शुष्क समझे जाने वाले विषय को जिस सरल और सरस रूप से हृदयङ्गम कराया है, वह देखते ही बनता है। ग्रन्थ की भाषा इतनी सरल और प्राञ्जल है कि जो भी विद्वान् इसे देखता है, इस के रचनासौष्ठव की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करता है। वस्तुतः यह ग्रन्थ १० न केवल व्याकरण सम्प्रदाय में, अपितु सकल संस्कृत वाङमय में अपने ढंग का एक अद्भुत ग्रन्थ है। महाभाष्य पाणिनीय व्याकरण का एक प्रामाणिक ग्रन्थ है। समस्त वैयाकरण इसके सन्मुख नतमस्तक हैं। अर्वाचीन वैयाकरण जहां सूत्र, वार्तिक और महाभाष्य में परस्पर विरोध समझते हैं, वहां वे महाभाष्य को ही प्रामाणिक मानते है।' परिचय नामान्तर-विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों में पतञ्जलि को गोनर्दीय, गोणिकापुत्र, नागनाथ, अहिपति, फणिभृत्, शेषराज, शेषाहि, चूर्णिकार और पदकार आदि नामों से स्मरण किया है। ___ गोनर्दीय-यादवप्रकाश आदि कोषकारों ने इस नाम को पत. २० ञ्जलि का पर्याय लिखा है । महाभाष्य १।१२१, २६॥ ३॥११६२।। ७।२।१०१ में 'गोनीय' आचार्य के मत निर्दिष्ट हैं। भतृहरि और कैयट आदि टोकाकारों के मत में यहां गोनर्दीय का अर्थ पतञ्जलि है। किसी गोनर्दीय आचार्य का मत वात्स्यायन कामसूत्र में भी १. यथोत्तरं हि मुनित्रयस्य प्रामाण्यम् । कैयट, भाष्यप्रदीय ॥१॥२६॥ २५ यथोत्तरं मुनीनां प्रामाण्यम् । नागेश, उद्योत ३।११८७॥ २. पूर्व पृष्ठ ३४६ टि० ७। ३. पूर्व पृष्ठ ३४५, ३४६ पर उद्धृत उद्धरण। ४. पूर्व पृष्ठ ३४६, टि० ४,५।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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