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वात्तिकों के भाष्यकार
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वाक्यकारस्यापि तदेव दर्शनमिति वातिकोन्मेषे कथितमस्माभिः ।
वातिकोन्मेषे विस्तरेण यथातत्त्वमस्माभिर्व्याख्यातमिति तत एवावधार्यम् ।
वातिकोन्मेषे यथागमं व्याख्यातम्, तत एवावधार्यम् । ५
वार्तिकोमेन्ष ग्रन्थ इस समय उपलब्ध नहीं है। हेलाराज का विशेष वर्णन आगे व्याकरण के 'दार्शनिक ग्रन्थकार' नामक २६ वें अध्याय के अन्तर्गत वाक्यपदीय के प्रकरण में किया जायगा।
___२. राघवसूरी राघवसूरि ने वार्तिकों की 'अर्थप्रकाशिका' नाम्नी व्याख्या लिखी १. है। इसका एक हस्तलेख मद्रास के राजकीय हस्तलेख संग्रह में । विद्यमान है। देखो सूचीपत्र भाग ४ खण्ड १C. पृष्ठ ५८०४ ग्रन्थाङ्क ३६१२ B.।
३. राजरुद्र राजरुद्र नामक किसी पण्डित ने काशिकावृत्ति में उद्धृत श्लोक- १५ वार्तिकों की व्याख्या लिखी है। राजरुद्र के पिता का नाम 'गन्नय' था।
इसका एक हस्तलेख मद्रास के राजकीय पुस्तकालय के हस्तलेखसंग्रह में विद्यमान है । यह भाग ४ खण्ड १ C. पृष्ठ ५८०३, ग्रन्थाङ्क ३६१२ A. पर निर्दिष्ट है । - इसका अन्त में निम्न पाठ
इति राजरुद्रिये (काशिका) वृत्तिश्लोकव्याख्यानेऽष्टमाध्यायस्य चतुर्थः पादः ।
इन दोनों ग्रन्थकारों का काल अज्ञात ।
इस अध्याय में वार्तिकों के प्राचीन भाष्यकारों का संकेत और तीन अर्वाचीन व्याख्याकारों का संक्षेप से वर्णन किया है। अगले २५ अध्याय में महाभाष्यकार पतञ्जलि का वर्णन किया जायगा ।
१. तृतीय काण्ड पृष्ठ ४४३, काशी सं०।। २. तृतीय काण्ड पृष्ठ ४४४ । ३. तृतीय काण्ड पृष्ठ ४६ ।