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________________ वार्तिकों के भाष्यकार ३५३ २. भर्तृहरि वाक्यपदीय २०४२ को स्वोपज्ञव्याख्या में भाष्य के नाम से एक लम्बा पाठ उद्धृत करता है स चायं वाक्यपदयोराधिक्यभेदो भाष्य एवोपव्याख्यातः । श्रतश्च तत्र भवान् श्रह — 'यथैकपदगतप्रातिपदिके हेतुराहायते ।' यह पाठ पातञ्जल महाभाष्य में उपलब्ध नहीं होता । ३. क्षीरतरङ्गिणी में क्षीरस्वामी लिखता हैं-भाष्ये नत्वं नेष्यते ।' यह मत महाभाष्य में नहीं मिलता । ૪૬ ४. महाभाष्य शब्द में 'महत्' विशेषण इस बात का द्योतक है। है कि उससे पूर्व कोई 'भाष्य' ग्रन्थ विद्यामान था । अन्यथा 'महत्' विशेषण व्यर्थ है । तुलना करो भारत - महाभारत, ऐतरेय - महैतरेय, कौषीतकि महाकौषीतकि शब्दों के साथ ।' १५ ५. भर्तृहरि महाभाष्य प्रदीपिका में दो स्थानों पर वार्त्तिकों के लिये 'भाव्यसूत्र' पद का प्रयोग करता है।' पाणिनोयसूत्रों के लिये 'वृत्तिसूत्र' पद का प्रयोग अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध होता है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं । भाष्य सूत्र और वृत्तिसूत्र पदों की पारस्परिक तुलना से व्यक्त होता है कि पाणिनीय सूत्रों पर केवल वृत्तियां हो लिखी गई थीं, अत एव उनका 'वृत्तिसूत्र' पद से व्यवहार होता है । वार्तिकों पर सीधे भाष्य ग्रन्थ लिखे गये, इसलिए वार्तिकों को 'भाष्यसूत्र' कहते हैं । वार्तिकों के लिए 'भाष्यसूत्र' नाम का व्यवहार इस बात २० का स्पष्ट द्योतक है कि वार्तिकों पर जो व्याख्यानग्रन्थ रवे गये, वे 'भाष्य' कहाते थे । 1 अनेक भाष्यकार महाभाष्य के अवलोकन से विदित होता है कि उस से पूर्व वार्तिों पर अनेक भाष्य ग्रन्थ लिखे गये थे । वे इस समय अनुपलब्ध ४ महाभाष्य में अनेक स्थानों पर 'अपर आहे' लिख कर वार्तिकों १. क्षीरत० १६४६ | पृष्ठ १३२, हमारा संस्क० । २. कोषीतकि गृह्य २३|| ३. देखो पूर्व पृष्ठ ३१६, पृष्ठ ३२०, टि० १ । प्राश्व० गृह्य ३ | ४ | ४ | शांखा गृह्य ४ ६ | टिप्पणी ७ । ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, पूर्व ४.२४०-२४१ । ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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