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________________ अष्टाध्यायी के वात्तिककार ३५१ ५--महाभाष्य ४।३।६० में किसी प्राचीन व्याकरण की निम्न तोन कारिकाएं उद्धृत हैं-- समानस्य तदोदेश्चाध्यात्मादिषु चेष्यते। ऊवं दमाच्च देहाच्च लोकोत्तरपदस्य च ।। मुखपार्वतसोरीयः कुजनपरस्य च । ईयः कार्योऽय मध्यस्य मण्मीयौ चापि प्रत्ययौ । मध्यो मध्यं दिनण् चास्मात् स्थाम्नो लुगजिनात्तथा । बाह्मो दैव्यः पाञ्चजन्यः गम्भीरायः इष्यते ॥ कैयट नागेश आदि टीकाकारों ने इन कारिकाओं को अष्टाध्यायी ४।३।६० पर वातिक समझ कर इनकी पूर्वापर सङ्गति लगाने के १० लिये अत्यन्त क्लिष्ट कल्पनाएं की हैं। क्लिष्ट कल्पनाएं करने पर भी इन्हें अष्टाध्यायी पर वार्तिक मानने से जो अनेक पुनरुक्ति दोष उपस्थित होते हैं, उनका वे पूर्ण परिहार नहीं कर सके। इन्हें वार्तिक मानने पर तृतीय कारिका का चतुर्थ चरण स्पष्टतया व्यर्थ है, क्योंकि अष्टाध्यायी ४ । ३ । ५८ में 'गम्भीराज्य सूत्र विद्यमान है । इसी १५ प्रकार गहादि गण (४।२।१३८) में "मुखपावतसोर्लोपः, जनपरयोः कुक च" गणसूत्र पठित है। अतः द्वितोय कारिका का पूर्वार्ध भी पिष्टपेषणवत् व्यर्थ है । इसलिये ये निश्चय ही किसी प्राचीन व्याकरण की कारिकाएं हैं। इनमें अपूर्व विधायक अंश की अधिकता होने से महाभाष्यकार ने इनका पूरा पाठ उद्धृत कर दिया। इन उद्धरणों से व्यक्त है कि महाभाष्य में उद्धृत अनेक वचन वातिककारों के वार्तिक नहीं हैं। __पं० वेदपति मिश्र ने अपने व्याकरण-वातिक - एक समीक्षात्मक अध्ययन में महाभाष्यस्थ वार्तिकों के सम्बन्ध में गम्भीर विवेचन किया है। पाठक उसे भी देखें। इस अध्याय में हमने पाणिनीयाष्टक पर वातिक रचने वाले सात वार्तिककारों और पांच अन्य वैयाकरणों (जिनके मत महाभाष्य में उद्धृत हैं) का सक्षेप से वर्णन किया है । अगले अध्याय में वार्तिकों के भाष्यकारों का वर्णन होगा। २०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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