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________________ २ -- महाभाष्य ४।२।६० में लिखा है - सर्वसादद्विगोश्च लः | यह वचन प्रचीन वैयाकरणों की किसी कारिका का एक चरण है । ५ महाभाष्य के कई हस्तलेखों में इस सूत्र के अन्त में कारिका का पूरा पाठ मिलता है ।" वह निम्न प्रकार है १५ ३५० संस्कृत व्याकरण का इतिहास इन नियमों का संग्रह जिस प्राचीन कारिका के अधार पर किया है, वह काशिका ६।१।१४४ में उद्धृत है ।' ३ - महाभाष्य ४।१।२७ में पढ़ा है - हायनो वयसि स्मृतः । १० यह पाठ भी किसी प्राचीन कारिका का एक चरण है | कारिका में ही ' स्मृतः' पद श्लोक र्त्यर्थ लगाया जा सकता है, अन्यथा वह व्यर्थ होगा । २५ अनुसूर्लक्ष्यलक्षणे सर्वसादेद्विगोश्च लः । इकन् पदोत्तरपदात् शतषष्टेः षिकन् पथः ॥ १३० ४ - महाभाष्य में कहीं-कहीं पूरी-पूरी कारिकाएं भी प्राचीन ग्रन्थों से उद्धृत हैं। यथा इन कारिकायों में 'इष्णुच्' और 'डावतु' प्रत्यय पर विचार २० किया है । अष्टाध्यायी में ये प्रत्यय नहीं हैं । उस में इन के स्थान में क्रमशः 'खिष्णुच्' और 'वतुप्' प्रत्यय हैं। परन्तु इन कारिकाओं में जो विचार किया है, वह अष्टाध्यायी के तत्तत् प्रकरणों में भी उपयोगी है | अतः महाभाष्यकार ने वहां-वहां विना किसी परिवर्तन के इन प्राचोन कारिकाओं का उद्धृत कर दिया है । इष्णु इकारादित्वमुदा तत्वात् कृतं भुवः । नमःतु स्वर सिद्ध्यर्थ मिकारादित्वमिष्णुचः ॥ ३ डावतावर्थ वैशिष्या निर्देश: पृथगुच्यते । मात्राद्यप्रतिघाताय भावः सिद्धश्च डावतोः ॥ * १. लुम्पेदवश्यमः कृत्ये तुङ्काममनसोरपि । समो हितततयोर्वा मांसस्य पचिनोः ॥ २. कैट ने पूरी कारिका की व्याख्या की है, परन्तु महाभाष्य के कई हस्तलेखों में पूरी कारिका उपलब्ध नहीं होती । ३. महाभाष्य ३।२।५७॥ ४. महाभाष्य २२५६॥ देखो - 'डावताविति – पूर्वाचार्य प्रक्रियापेक्ष निर्देश:', इसी सूत्र पर कैयट ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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