SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० ३४८ । संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास उद्धृत किया है-उभयथा गोणिकापुत्र इति । इस पर नागेश लिखता है-गोणिकापुत्रो भाष्यकार इत्याहुः । 'पाहुः पद से प्रतीत होता है कि नागेश को यह मत अभीष्ट नहीं है । वात्स्यायन कामसूत्र में गोणिकापुत्र का भी उल्लेख मिलता है। कोशकार पतञ्जलि के पर्यायों में इस नाम को नहीं पढ़ते । अतः यह निश्चय ही महाभाष्यकार से भिन्न व्यक्ति है। ३. सौर्य भगवान् पतञ्जलि महाभाष्य ८।२।१०६ में लिखता है-तत्र सौर्यभगवता उक्तम्-अनिष्टिज्ञो वाडवः पठति । ___कैयट के मतानुसार यह आचार्य 'सौर्य' नामक नगर का निवासी था। सौर्य नगर का उल्लेख काशिका २।४।७ में मिलता है।' महाभाष्यकार ने इस प्राचार्य के नाम के साथ भगवान् शब्द का प्रयोग किया है। इससे इस प्राचार्य की महती प्रामाणिकता प्रतीत होती है । पतञ्जलि के लेख से यह भी विदित होता है कि सौर्य आचार्य १५ वाडव प्राचार्य से अर्वाचीन है। ४. कुणरवाडव कुणरवाडव प्राचार्य का मत महाभाष्य ३ । २ । १४ तथा ७ । ३।१ में उद्धृत है। क्या यह पदैकदेश न्यास से पूर्वोक्त वार्तिककार वाडव हो सकता है ? ५. भवन्तः ? महाभाष्य ३।१।८ में लिखा है-इह भवन्तस्त्वाहुः-न भवितव्यमिति । पतञ्जलि ने यहां 'भवन्तः पद से किस प्राचार्य वा किन आचार्यों को स्मरण किया है, यह अज्ञात है। १. गोंणिकापुत्रः पारदारिकम् । १११११६॥ संबन्धिसखिश्रोत्रियराजदार२५ वर्जमिति गोणिकापुत्रः । १।५।३१ । २. सौर्य नाम नगरं तत्रत्येनाचायें णेदमुक्तम् । भाष्यप्रदीय ८।२।१०६ ॥ ३. सौर्यं च नगरं कैतवतं च ग्रामः । ४. कुणरवाडवस्त्वाह-नषा शंकरा, शंगरेषा । कुत एतत् ? गृणातिः शब्दकर्मा तस्यैष प्रयोगः ॥ कुणरवाडवस्त्वाह-नैष वहीनरः, कस्तहि ? विहीनर ३० एषः । विहीनो नरः कामभोगाभ्यां विहीनरः । विहीनरस्यापत्यं वैहीनरिः । २०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy