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________________ अष्टाध्यायी के वार्तिककार ३४७ प्राचार्य का उल्लेख बहुधा मिलता है । कामन्दकनीतिसार की उपाध्याय निरपेक्षणी नाम्नी प्राचीन टीका का रचयिता कामसूत्र को आचार्य कौटिल्य की कृति मानता है । डा० कीलहार्न का मत है कि गोनर्दीय प्राचार्य महाभाष्यकार से भिन्न व्यक्ति है । ५ हां, पतञ्जलि के कश्मीरदेशज होते हुए भी गोनर्दीय शब्द का व्यवहार सम्भव है । महाभारत शान्तिपर्वस्थ शिव सहस्रनाम में शिव का एक नाम गोनर्द भी लिखा है। उससे वा नामधेयस्य ( १ । १ । ७३) वार्तिक से वृद्ध संज्ञा होकर 'गोनर्दीय' शब्द भाष्यकार के लिये प्रयुक्त हो सकता है, यदि यह बात कथंचित् सुदृढ़ रूपेण सिद्ध हो जाये कि पतञ्जलि शैव सम्प्रदाय के प्राचार्य थे । महाभाष्य में इसका १० किञ्चिन्मात्र भी संकेत उपलब्ध नहीं होता । हमारे मत में गोनर्दीय प्राचार्य महाभाष्यकार पतञ्जलि नहीं है । महाभाष्यकार पतञ्जलि कश्मीरदेशज है, यह हम आगे महाभाष्य के प्रकरण में लिखेंगे । यदि कोषकारों की प्रसिद्धि को प्रामाणिक माना जाय, तो यह १५ पतञ्जलि महाष्यकार न होकर निदानसूत्रकार पतञ्जलि हो सकता है । सम्भव है कैयट प्रादि को नाम सादृश्य से भ्रम हुआ हो । २. गोणिका पुत्र इस प्राचार्य का मत पतञ्जलि ने महाभाष्य १ । ४ । ५१ में १. ११।१५।। १|५|२५|| ४ | ३ |२५|| यह सूत्र संख्या 'दुर्गा प्रिंटिंग प्रेस २० अजमेर' में मुद्रित कामसूत्र हिन्दी अनुवाद के अनुसार है । यह कामसूत्र का संक्षिप्त संस्करण है | प्रकाशितः, २. न्याय- कौटिल्य- वात्स्यायन- गौतमीयस्मृति-भाष्य चतुष्टयेन प्रकाशित पुरुषार्थ चतुष्टयोपाय इति भुवि महीतले प्रख्यातः । अलवर राजकीय पुस्तकालय सूचीपत्र, परिशिष्ट पृष्ठ ११० । भाष्य शब्द का प्रत्येक के साथ २५ संबन्ध है । न्यासभाष्य, कौटिल्यभाष्य (अर्थशास्त्र), वात्स्यायन भाष्य ( काम - शास्त्र), और गोतमस्मृतिभाष्य । अर्थशास्त्र और कामशास्त्र का प्रथमाध्याय सूत्रग्रन्थ है, शेष संपूर्ण ग्रन्थ उन सूत्रों का भाष्य है । कामन्दकनीतिसार ११५ में 'चाणक्य का विशेषण 'एकाकी ' है । गोतम धर्मसूत्र के मस्करीभाष्य में भाष्य बहुधा उद्धृत है । एकाकी और असहाय शब्दों के पर्यायवाची होने से ३० क्या ग्रहासाय भाष्य कौटिल्यविरचित हो सकता है ? असहाय
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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