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३४६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
न तर्हि इदानीमिदं भवति–इच्छाम्यहं काशकटीकारमिति । इष्टमेवैतद् गोनीयस्य ।
गोनीयस्त्वाह-इष्टमेवैतत् संगृहीतं भवति-प्रतिजरमतिजरैरिति भवितव्यम् ।
परिचय गोनर्दीय नाम देशनिमित्तक है । इससे प्रतीत होता है कि गोनर्दीय आचार्य गोनर्द का है। इसका वास्तविक नाम अज्ञात है।
गोनर्द देश-उत्तर प्रान्त का वर्तमान गोंडा जिला सम्भवतः प्राचीन गोनई है। काशिका १ । १ । ७५ में गोनर्द को प्राच्य देश १० माना है। कई ऐतिहासिक गोनर्द को कश्मीर में मानते हैं। राज
तरङ्गिणी नामक कश्मीर के ऐतिहासिक ग्रन्थ में गोनर्द नामक तीन राजाओं का उल्लेख है । सम्भव है उनके सम्बन्ध से कश्मीर का भी कोई प्रान्त गोनदं नाम से प्रसिद्ध रहा हो । ऐसी अवस्था में गोनर्द
नाम के दो देश मानने होंगे। १५ गोनर्दीय शब्द में विद्यमान तद्धित प्रत्यय से स्पष्ट है कि गोनर्दीय आचार्य प्राच्य गोनदं देश का था।
गोनर्दीय और पतञ्जलि । भर्तहरि कैयट राजशेखर आदि ग्रन्थकार गोनर्दीय शब्द को पतञ्जलि का नामान्तर मानते हैं । वैजयन्ती-कोषकार भी इसे २० पतञ्जलि का पर्याय लिखता है। वात्स्यायन कामसूत्र में गोनर्दीय १. महाभाष्य ३।१।१२॥
२. महाभाष्य ७।२।१०२॥ ३. गोनर्द शब्द की एक प्राचां देशे' (११११७५) सूत्र से वृद्ध संज्ञा होने पर ही 'वृद्धाच्छः' (४।२।११४) से 'छ' प्रत्यय संभव है।
४. गोनीयस्त्वाह..... तस्मादेतद् भाष्यकारो व्याचक्षति (?, व्याचष्टे) २५ सूत्रमिति । भाष्यदीपिका (१।१।२१) हमारा हस्तलेख पृष्ठ २७६; पूना सं० पृष्ठ २११।
५. भाष्यकारस्त्वाह-प्रदीप ११११२१॥ गोनर्दीयपदं व्याचष्टे-भाष्यकार इति । उद्योत १११॥२१॥
६. यस्तु प्रयुङ्क्ते तत्प्रमाणमेवेति गोनीयः । काव्यमीमांसा, पृष्ठ २६॥ ३० । ७. गोनर्दीयः पतञ्जलिः । पृष्ठ ६६, श्लोक १५७ ।