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संस्कृत व्याकरण- शास्त्र का इतिहास
महाभाष्य के इन उद्धरणों में 'कुणरवाडव' प्राचार्य का उल्लेख मिलता है । क्या महाभाष्य ८ २ १०६ में स्मृत वाडव 'पदेषु पदेकदेशान्' नियम से कुणरवाडव हो सकता हैं ? कुणरवाडव का उल्लेख आगे किया जायेगा ।
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६. व्याघ्रभूति
महाभाष्य में व्याघ्रभूति प्राचार्य का साक्षात् उल्लेख नहीं है । महाभाष्य २।४ । ३६ में 'जग्धिविधियपि' इत्यादि एक श्लोकवार्तिक उद्धत है । कैयट के मतानुसार यह श्लोकवार्तिक व्याघ्रभूतिविरचित है । काशिका ७ १६४ में एक श्लोक उद्धृत है । कातन्त्रवृति १० पञ्जिका का कर्त्ता त्रिलोचनदास उसे व्याघ्रभूति के नाम से उद्धृत करता है । वह लिखता है
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तथा च व्याघ्रभूतिः -- संबोधने तुशनसस्त्रिरूपं सान्तं तथा नान्तमथाप्यदन्तमिति ।
सुपद्यमकरन्दकार ने भी इसे व्याघ्रभूति का वचन माना है ।" १५ न्यासकार इसे आगम वचन लिखता है ।"
काशिका ७ । २ । १० में उद्धृत अनिट् कारिकाएं भी व्याघ्रभूति - विरचित मानी जाती है। पं० गुरुपद हालदार ने इसे पाणिनि का साक्षात् शिष्य लिखा है । इसमें प्रमाण अन्वेषणीय है ।
७. वैयाघ्रपद्य
आचार्य वैयाघ्रपद्य का नाम उदाहरणरूप में महाभाष्य में बहुधा
१ श्रयमेवार्थी व्याघ्रभूतिनान्युक्त इत्याह ।
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२. संबोधने तुशनसस्त्रिरूपं सान्तं तथा नान्तमथाप्यदन्तम् । माध्यदिनिष्ट गुणवन्ते नपुंसके व्याघ्रपदां वरिष्ठः । ३. कातन्त्र, चतुष्टय | ४. सुपद्म, सुवन्त २४ । ५. न्यास ७।१।६४ ॥ ६. थमिमन्तेष्वनिडेक इष्यते इति व्याघ्रभूतिना व्याहृतस्य । शब्दकौस्तुभ अ० १, पाद १, ० २, पृष्ठ ८२ । तप तिपिमिति व्याघ्रभूतिवचनविरोधाच्च । धातुवृत्ति पृष्ठ ८२ । ७. व्याक० दर्श० इतिहास पृष्ठ ४४४ ।