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अष्टाध्यायी के वात्तिककार
३. सुनाग महाभाष्य में अनेक स्थानों पर सौनाग वातिक उद्धृत है।' हरदत्त के लेखानुसार इन वाकिों के रचयिता का नाम सुनाग था।' कैयट विरचित महाभाष्यप्रदीप २।२।१८ से विदित होता है कि सुनाग प्राचार्य कात्यायन से अर्वाचीन है।
सौनाग वार्तिक अष्टाध्यायी पर थे महाभाष्य ४।३।१५५ से प्रतीत होता है कि सौनाग वार्तिक पाणिनीय अष्टक पर रचे गये थे। पतञ्जलि में लिखा है-'इह हि सोनागाः पठन्ति-वुअश्चाञ्कृतप्रसंगः । इस पर कैयट लिखता हैपाणिनीयलक्षणे दोषोद्भावनमेतत् ।
इसी प्रकार पतञ्जलि ने 'प्रोमाङोश्चः' सूत्रस्थ चकार का प्रत्याख्यान करके लिखा है-एवं हि सोनागाः पठन्ति-चोऽनर्थकोऽबिकारादेङः ।
श्री पं० गुरुपद हालदार ने सुनाग को पाणिनि से पूर्ववर्ती माना है। उनका मत ठीक नहीं है, यह उपर्युक्त उद्घारणों से स्पष्ट है । १५ हालदार महोदय ने सुनाग आचार्य को नागवंशीय लिखा है, वह सम्भवतः नामसादृश्य मूलक है।
सौनाग वार्तिकों का स्वरूप सौनाग वार्तिक कात्यायनीय वार्तिकों की अपेक्षा बहुत विस्तृत हैं । अत एव महाभाष्य २।२।१८ में कात्यायनीय वार्तिक की व्याख्या २० के अनन्तर पतञ्जलि ने लिखा है-एतदेव च सौनागैविस्तरतरकेण पठितम् । __ महाभाष्य ४।१।१५ में लिखा है-अत्यल्पमिदमुच्यते-ख्युन इति । नस्नमोकक्ल्युंस्तरुणतलुनानामुपसंख्यानम् । - यद्यपि महाभाष्य में यहां 'नस्न' आदि वार्तिकों के कर्ता का २५ नाम नहीं लिखा, तथापि महाभाष्य ३।२।५६ तथा ४।१।८७ में इसे
१. महाभाष्य २।२।१८।। ३।२।५६॥ ४।१।७४, । ८७॥ ४।३।१५।। • ६११६५। ६।३॥४३॥ २. सुनागस्याचार्यस्य शिष्याः सोनागाः । पदमञ्जरी ७१२१७; भाग २, पृष्ठ ७६१ ।
३. कात्यायनाभिप्रायमेव प्रदर्शयितु सौनागरतिविस्तरेण पठितमित्यर्थ, । ३. ४. महाभाष्य ६।१।९५॥ ५. व्याक० दर्श० इतिहास, पृष्ठ ४४५ ।