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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
२. भारद्वाज भगवान् पतञ्जलि ने भारद्वाजीय वार्तिकों का उल्लेख महाभाष्य में अनेक स्थानों पर किया है। ये वार्तिक पाणिनीयाष्टक पर ही
रचे गये थे, यह बात महाभाष्य में उद्धृत भारद्वाजीय वार्तिकों के ५ सूक्ष्म पर्यवेक्षण से स्पष्ट हो जाती है।'
__ भारद्वाजीय वार्तिक कात्यायनीय वार्तिकों से कुछ विस्तृत थे। यथा
कात्या०-घुसंज्ञायां प्रकृतिग्रहणं शिदर्यम् ।' भार०-घुसंज्ञायां प्रकृतिग्रहणं शिद्विकृतार्थम् । कात्या०-यक्चिणोः प्रतिषेधे हेतुमणिधिनामुपसंख्यानम् ।।
भार०–यक्चिणोः प्रतिषेधे णिप्रिन्यिग्रन्थिबजामात्मनेपदाकर्मकाणामुपसंख्यानम् ।
इन भारद्वाजीय वातिकों का रचयिता कौन भारद्वाज है, कह अज्ञात है । यदि ये वार्तिक पाणिनीय व्याकरण पर नहीं लिखे गये १५ हों, तो अवश्य ही पूर्वनिर्दिष्ट भारद्वाज व्याकरण पर रहे होंगे। परन्तु
भारद्वाजीय वार्तिकों को भारद्वाज व्याकरण के साथ संम्बन्ध मानने पर 'भारद्वाजीय' में प्रोक्तार्थ में प्रत्यय न होकर 'पाणिनीय-वात्तिक' के समान संबन्ध में होगा। भाष्यकार की शैली के अनुसार यहां प्रोक्तार्थ
में 'छ' (ईय) प्रत्यय है । यथा क्रोष्ट्रीयाः पठन्नि (महा० २१११३) में २० 'छ' और सौनागाः पठन्ति (महा० ४।३।१२४) में 'अण' प्रोक्तार्थ में
है। अतः भारद्वाजीय वात्तिक निश्चय ही पाणिनीय व्याकरण पर लिखे गये थे।
१. महाभाष्य १३१३२०, ५६॥ १।२।२२॥ २३॥६७॥ ३॥११३८, ४८, २५ ८६॥ ४११७६॥ ६।४।४७, १५५॥
२. भारद्वाजीयाः पठिन्त-नित्यमकित्त्वमिडाद्योः, क्त्वाग्रहणमुत्तरार्थम् । महाभाष्य १२।२२॥ न्यासकार लिखता है-पूङचेत्यत्र सूत्रे द्वयोविभाषयोमध्ये ये विधयस्ते नित्या भवन्तीति मन्यमानैर्भारद्वाजीयरिदमुक्तम्-नित्यमकित्त्वमिडाद्योरिति । भाग १, पृष्ठ १६१ । भारद्वाजीयाः पठन्ति-भ्रस्जो रोपधयोर्लोपः, पागमो रम् विघयते। महाभाष्य ६।४।४७॥ ३. महाभाष्य ११॥२०॥
४. महाभाष्य ३॥१८॥