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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
इस श्लोक के चतुर्थ चरण का पाठ कुछ विकृत है । वहां 'सदारोहणप्रियः' के स्थान में 'स्वर्गारोहणप्रियः' पाठ होना चाहिये ।
आचार्य वररुचि के अनेक श्लोक शाङ्गघरपद्धति, सदुक्तिकर्णामृत, और सुभाषिमुक्तावली आदि अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। ___कात्यायन मुनि विरचित काव्य के लिये इस ग्रन्थ का 'काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि' नामक ३०वां अध्याय देखिये।
२. भ्राज-संज्ञक श्लोक-महाभाष्य अ० १, पाद १, आह्निक १ में 'भ्राजसंज्ञक' श्लोकों का उल्लेख मिलता है।' कैयट, हरदत्त,
और नागेश भट्ट आदि का मत है कि भ्राजसंज्ञक श्लोक वार्तिककार १० कात्यायन की रचना हैं । ये श्लोक इस समय अप्राप्य हैं। इन श्लोकों
में से 'यस्तु प्रयुङ्क्ते कुशलो विशेषे०' श्लोक पतञ्जलि ने महाभाष्य में उद्धृत किया है', ऐसा टीकाकारों का मत है।
अन्य श्लोक-महाभाष्यप्रदीप ३ । १ । १ में पठित 'अर्थविशेष उपाधिः' श्लोक भी भ्राजान्तर्गत है । ऐसा पं० रामशंकर भट्टाचार्य १५ का मत है।
३. छन्दःशास्त्र वा साहित्य-शास्त्र-कात्यायन ने कोई छन्द:शास्त्र अथवा साहित्य-शास्त्र का ग्रन्थ भी लिखा था। इसके लिए इसी ग्रन्थ के अध्याय ३० में कात्यायन के प्रसंग में अभिनव गुप्त का
उद्धरण देखें। २० ४. स्मृति-षड्गुरु-शिष्य ने कात्यायन स्मृति और भ्राजसंज्ञक
श्लोकों का कर्ता वार्तिककार को माना है। वर्तमान में जो कात्यायन
१. क्व पुनरिदं पठितम् ? भ्राजा नाम श्लोकाः ।
२. कात्यायनोपनिबद्धभ्राजाख्यश्लोकमध्यपठितस्य ......। महाभाष्यप्रदीय, नवाह्निक, निर्णयसागर सं०, पृष्ठ ३४ । ३. कात्यायनप्रणीतेषु २५ भ्राजाख्यश्लोकेषु मध्ये पठितोऽयं श्लोकः । पदमञ्जरी भाग १, पृष्ठ १० ।
___ ४. भ्राजा नाम कात्यायनप्रणीताः श्लोका इत्याहुः। महाभाष्यप्रदीपोद्योत, नवाह्निक, निर्णयसागर सं०, पृष्ठ, ३३ । ५. महाभाष्य प्रथमाह्निक ।
६. द्र०-पूना पोरियण्टलिस्ट, भाग xiii में रामशंकर भट्टाचार्य का लेख ।
७. स्मृतेश्च कर्ता श्लोकानां भ्राजनाम्नां च कारकः । निदानसूत्र की ३० भूमिका पृष्ठ २७ पर उद्धृत (लाहौर संस्क०)