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________________ ३३६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास इन दोनों स्थलों पर 'इमानि च भूय: ' "प्रयोजनानि' पद समान लेखनशैली के निर्देशक हैं । और दोनों स्थलों पर 'इमानि च भूय:' वाक्यनिर्दिष्ट प्रयोजन महाभाष्यकार प्रदर्शित हैं, यह सर्वसम्मत है । इसी प्रकार क्ङिति च सूत्र के प्रारंम्भिक दो प्रयोजन ५ वार्तिककार निर्दिष्ट हैं, यह भी निर्विवाद है । अतः उसी शैली से लिखे हुए 'रक्षोहागम' आदि वाक्य निर्दिष्ट पांच प्रयोजन निःसन्देह कात्यायन के समझने चाहिये । इसलिए कात्यायन के वार्तिक-पाठ का प्रारम्भ - ' रक्षोहागमलघ्वसन्देहाः प्रयोजनम्' से ही होता है । डा० सत्यकाम वर्मा द्वारा हमारा श्रसत्य उल्लेख - वर्मा जी ने १० अपनी पुस्तक के पृष्ठ १८० पर लिखा है - 'परम्परा से कात्यायन प्रणीत रूप में मान्य 'सिद्धे शब्दार्थसबन्धे' पर श्री मीमांसक जी आपत्ति उठाते हैं कि यह वार्त्तिक कात्यायन का नहीं है । और यथा लौकिकवैदिकेषु को वे कात्यायन का प्रथम वार्तिक सिद्ध करने का प्रयास करते हैं......।' पाठक स्वयं विचारों कि हमने सिद्धे शब्दार्थ - १५ सम्बन्धे वार्त्तिक कात्यायन का नहीं है, और यथा लौकिकवेदिकेषु उस का प्रथम वार्त्तिक है, यह कहां लिखा है ? हमने तो इतना ही निर्देश किया है कि सिद्धे शब्दार्थसंबन्धे कात्यायन का प्रथम वार्तिक नहीं हैं, अपितु उससे पूर्वपठित रक्षोहागमलभ्वसन्देहाः प्रयोजनम् प्रथम वार्त्तिक है । वर्मा जी ने इसी प्रकार बहुत स्थानों पर हमारे २० नाम से मिथ्या बातें लिखकर हमारा खण्डन करके अपने पाण्डित्य का डिण्डिमघोष करने की अनार्थ चेष्टा की है । 1 महाभाष्य व्याख्यात वात्तिक श्रनेक श्राचार्यों के हैं में जितने वार्तिक व्याख्यात हैं, वे सब कात्यायनमहाभाष्य विरचित नहीं हैं । पतञ्जलि ने अनेक प्राचार्यों के उपयोगी वचनों २५ का संग्रह अपने ग्रन्थ में किया है, कुछ स्थानों पर पतञ्जलि ने विभिन्न वार्तिककारों के नामों का उल्लेख किया है, परन्तु अनेक स्थानों पर नामनिर्देश किये बिना ही अन्य आचार्यों के वार्तिक उद्धृत किये हैं । यथा १ – महाभाष्य ६ । १ । १४४ में एक वार्तिक पढ़ा हैं - समो हित३० तयोर्वा लोपः । यहां वार्तिककार के नाम का उल्लेख न होने से यह कात्यायन का वार्तिक प्रतीत होता है । परन्तु 'सर्वादीनि सर्वनामानि " अष्टा० १|१|२७|
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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