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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास कात्यायन की प्रामाणिकता - पतञ्जलि ने कात्य ( कात्यायन ) के लिये 'भगवान्' शब्द का प्रयोग किया है।' इस से वार्तिककार की प्रामाणिकता स्पष्ट है । न्यासकार भी लिखता है - ३३२ एतच्च कात्यायनप्रभृतीनां प्रमाणभूतानां वचनाद् विज्ञायते । ' कात्यायनवचनप्रामाण्याद् घातुत्वं वेदितव्यम् । कात्यायन और शबरस्वामी - ऐसे प्रमाणभूत आचार्य के विषय में मीमांसाभाष्यकार शबरस्वामी लिखता है... सद्वादित्वात् पाणिनेवचनं प्रमाणम्, श्रसद्वादित्वान्न कात्यायनस्य । * शबरस्वामी का कात्यायन के लिये “प्रसद्वादी" शब्द का प्रयोग १० करना चिन्त्य है । ३० शबर के दोषारोपण का कारण - शबर ने वार्त्तिककार कात्यायन के लिये जो 'असद्वादी' विशेषण का प्रयोग किया है, उसका कारण सम्भवतः यह है कि शबर ने कात्यायन के प्रकृत वार्तिक का अभिप्राय नहीं समझा । अथवा दूसरा कारण यह हो सकता है कि महाभाष्य १५ ( १ । १ । ७३ ) में जिह्वाकात्य पद का निर्देश मिलता है, और न्यासकार श्रादि इसका अर्थ जिह्वाचपलः कात्यः करते हैं । जैन शाकटायन २ । ४ । २ की व्याख्या में भी यही अर्थ लिखा है । संभवत: इस चापल्य से प्रभावित होकर शबर ने कात्यायन को प्रसद्वादी कहा हो । कात्यायन का जिह्वाचापल्य = आवश्यकता से अधिक कहने का २० स्वभाव उसके वार्तिकों से भी व्यक्त होता है । काल यदि हमारा पूर्व विचार ठीक हो, अर्थात् वातिककार याज्ञवल्क्य का पौत्र हो, तो वार्तिककार पाणिनि से कुछ उत्तरवर्ती होगा । यदि वह पाणिनि का साक्षात् शिष्य हो, जैसा कि पूर्व लिख चुके हैं, तो वह पाणिनि का समकालिक होगा । अतः वार्तिककार कात्यायन का काल विक्रम से लगभग २६०० - ३००० वर्ष पूर्व है । २५ १. प्रोवाच भगवान् कात्यः ३ २०३ ॥ २. न्यास ६ । ३ ५०, भाग २, पृष्ठ ४५३, ४५४ ॥ ३. न्यास ३|१|३५, भाग १, पृष्ठ ५२७ । ४. मीमांसाभाष्य १०|८|४||
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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