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३३० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास हम अपने नीरजस्तम ऋषियों को झूठा मानने को तैयार नहीं। समस्त प्राचीन आर्ष वाङ मय उन्हीं नीरजस्तम ऋचि-मुनि-प्राचार्यों द्वारा प्रोक्त है, जिनके विषय में आयुर्वेदीय चरक संहिता में कहा हैप्राप्तास्तावत्
रजस्तमोभ्यां निर्मुक्तास्तपोजानबलेन ये । . येषां त्रिकालममलं ज्ञानमव्याहतं सदा ॥ प्राप्ता; शिष्टा विबुद्धास्ते तेषां वाक्यमसंशयम् ।
सत्यम्, वक्ष्यन्ति ते कस्मादसत्यं नीरजस्तमाः ॥'
इसी प्रकार श्री वर्मा जी ने अपने ग्रन्थ में अन्यत्र भी कई स्थानों १० पर हमारे लेख को मिथ्या रूप में उद्धृत करके समालोचना की है। उन
में से कुछ आवश्यक अंशों का निर्देश आगे तत्तत् प्रकरण में करेंगे। ___ पाणिनि का शिष्य-पूर्व पृष्ठ २०१ पर लिख चुके हैं । कि नागेश भट्ट के मतानुसार वार्तिककार कात्यायन पाणिनि का साक्षात्
शिष्य है। १५ देश-महाभाष्य पस्पशाह्निक में 'यथा लौकिकवैदिकेषु' वार्तिक की व्याख्या करते हुए लिखा है
प्रियतद्धिता दाक्षिणात्याः । यथा लोके वेदे च प्रयोक्तव्ये यथा लौकिकवैदिकेषु प्रयुञ्जते ।
इससे विदित होता है कि वात्तिककार कात्यायन दाक्षिणात्य था । २० कथासरित्सागर में वात्तिककार कात्यायन को कौशाम्बी का
निवासी लिखा है, वह प्रमाणमूत पतञ्ज ल के ववन से विरुद्ध होने के कारण अप्रमाण है। सम्भव है उत्तरकालीन वररुचि कात्यायन कौशाम्बी का निवासी रहा हो । नाम-सादृश्य से कथासरित्सागर के
निर्देश में भूल हुई होगी। २५ स्कन्द पुराण के अनुसार याज्ञवल्क्य का प्राश्रम आनर्त=गुजरात में था। सम्भव है याज्ञवल्क्य के मिथिला चले जाने पर उसका पुत्र
१. चरक, सूत्रस्थान ११ । १८, १६ ॥ २. महाभाष्य अ० १, पाद १ प्रा० १॥ ३. द्र०-१। ३ तथा ४ ॥ ४. नागर खण्ड १७४१५५॥ ५. इस लेख पर डा० वर्मा ने आपत्ति की है-'मिथिलि की यह जिद्द
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