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________________ अष्टाध्यायी के वात्तिककार ३२६ उत्तर-हमें वर्मा जी से यह आशा नहीं थी कि वे किसी की समीक्षा करते हुए लेखक के अभिप्राय वा कथन को मिथ्यारूप से उद्धृत करेंगे। मैंने कहीं भी वातिककार और प्रातिशाख्य के कर्ता को एक नहीं लिखा । मैंने तो स्पष्ट लिखा है कि वार्तिककार वररुचि कात्यायन (कात्यायन का पुत्र) है, और प्रातिशाख्यकार कात्यायन ५ याज्ञवल्क्य का पुत्र है। यह तो वर्मा जी का ही दोष है, जो पृथक्पृथक् प्रसंगों के लेखों को लेखक के अभिप्राय के विरुद्ध इकट्ठा करके उदधत करते हैं। अतः पदे पदे मत बदलने का दोष मेरे पर थोपना निन्तान्त मिथ्या है। (घ) पाश्चर्य इस बात का है कि अन्तिम बात को कहते हुए १० वेद-प्रवक्ता, परिशिष्ट-प्रवक्ता, वातिककार और प्रातिशाख्यकार आदि के रूप में प्रसिद्ध व्यक्तियों को एक ही व्यक्ति मान बैठे हैं । पृष्ठ १८४, १८५ । उत्तर-वर्मा जी का यह लेख भी मिथ्या हो है। मैंने वार्तिककार और प्रातिशाख्यकार को एक लिखा ही नहीं। दोनों में क्रमशः पुत्र- १५ पिता का सम्बन्ध दर्शाया है। अब रही अनेक ग्रन्थों के प्रवक्ता समान नामधारी अनेक व्यक्ति हैं वा एक ही व्यक्ति । इस विषय में दोनों ही बातें हो सकती हैंसमान नामधारो भिन्न-भिन्न व्यक्ति भी हो सकते हैं और एक भी। इस का निर्णय तो ऐतिहासिक तथ्य पर निर्भर है । पाश्चात्य २० विद्वानों ने मन्त्रकाल, ब्राह्मणकाल, सूत्रकाल आदि विविध कालों की जो कल्पना की है, वह भारतीय अनविच्छिन्न इतिहास के विपरीत है। हम प्रथम अध्याय में ही जैमिनि और वात्स्यायन सदश प्राप्त पुरुषों के वचनों के आधार पर लिख चुके हैं कि मन्त्र-ब्राह्मण-धर्मसूत्र एवं आयुर्वेद के प्रवक्ता प्रायः एक हो व्यक्ति थे। बाधक प्रमाण उपस्थित २५ न होने पर इन प्राप्त पुरुषों के वचनों को प्रमाण मान कर यदि कात्यायन-संहिता कात्यायन-शतपथ कात्यायन-श्रौत-गृह्यसूत्र और प्रातिशाख्य के कर्ता को एक माना है, तो कुछ अनुचित नहीं किया है। क्योंकि भारतीय प्राचीन वाङमय के प्रमाणों से इस तथ्य को ही पूष्टि होती है । श्री वर्मा जो पाश्चात्य विद्वानों पर अन्ध विश्वास ३० करके भारतीय ऋषि-मुनि-प्राचार्यों को 'झूठा' मान सकते हैं, पर १. पूर्व पृष्ठ २१-२४।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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