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________________ अष्टाध्यायी के वात्तिककार ३२७ और विकास' नामक ग्रन्थ (जो प्रायः पाश्चात्य विद्वानों के मतों का संग्रह रूप है) में, वार्तिककार कात्यायन के प्रसङ्ग में हमने जो सप्रमाण स्थापनाएं की हैं, उनका सप्रमाण उत्तर न देकर पाश्चात्य मत के प्रवाह में बहते हुए हमारे लेख पर जो मिथ्या आक्षेप किये हैं, उनका उत्तर भी हम यहां प्रसङ्गवश देना उचित समझते हैं । ५ वर्मा जी लिखते हैं (क) मीमांसक का यह अनुमान कि वाररुच निरुक्त-समुच्चय का लेखक भी वररुचि कात्यायन था। पहली धारणा (अनेक कात्यायन रूप) का फिर भी एक बड़ा आधार है, जब कि दूसरी धारणा (कात्यायन के नाम से निर्दिष्ट सभी ग्रन्थ एक ही व्यक्ति के हैं) का १० उतना भी आधार नहीं। कारण यह कि कि निरुक्त-समुच्चय का कर्ता अपने संरक्षक राजा और अपने विषय में जो परिचय देता है उस से वह पतञ्जलि से परवर्ती सिद्ध होता है । (पृष्ठ १८३) उत्तर-वर्मा जी का लेख मिथ्या है । मैंने कहीं पर भी निरुक्तसमुच्चयकार वररुचि कात्यायन को वार्तिककार कात्यायन नहीं १५ कहा। इस के विपरीत वत्तिकार वररुचि के प्रसङ्ग में मैंने इसे विक्रम समकालिक ही माना है। मैं स्वयं अनेक कात्यायन मानता हूं और उन का निर्देश भी मैंने इसी ग्रन्थ में (पृष्ठ ३२३) किया है । तब यह लिखना कि मैं निरुक्त-समुच्चयकार और वातिककार को एक मानता हूं, नितान्त मिथ्या है। किसी लेखक के लेख को मिथ्या रूप से उद्धृत २० करके उसका खण्डन करना विद्वानों के लिये शोभास्पद नहीं है । ___ उक्त उद्धरण का उत्तरार्ध भी मिथ्या है । निरुक्तसमुच्चयकार ने अपने ग्रन्थ में कहीं भी अपने संरक्षक का उल्लेख नहीं किया, और ना ही अपना परिचय दिया है। निरुक्तसमुच्चयकार ने तो केवल इतना ही लिखा है २५ युष्मत्प्रसादादहं क्षपितसमस्तकल्मषः सर्वसम्पत्संगतो धर्मानुष्ठानयोग्यश्च जातः । निरुक्तसमु० पृष्ठ ५१, संस्क० २ ॥ इस के अतिरिक्त निरुक्तसमुच्चय में कोई भी संकेत नहीं है । हम ने वृत्तिकार वररुचि (विक्रम समकालिक) के प्रसङ्ग में इस वचन को उद्धृत करके 'यह किसी राजा का धर्माधिकारी था', इतना ही ३० लिखा है । हां, इस अर्वाचीन वररुचि के अन्य ग्रन्थों के अन्त्यवचनों
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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