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________________ अष्टाध्यायी के वार्तिककार .. ३२३ है।' महाराज समुद्रगुप्त ने कृष्णचरित में वररुचि को स्वर्गारोहण काव्य का कर्ता कहा है। उस के अनुसार यह वररुचि वार्तिककार कात्यायन ही हैं। कथासरित्सागर और बृहत्कथामञ्जरी में कात्यायन का श्रुतधर नाम भी मिलता है । हमें संख्या ३, ४ के नामों में सन्देह है । कदाचित् ये नाम उत्तरकालीन कात्यायन वररुचि के रहे होंगे । वंश-कात्य पद गोत्र प्रत्ययान्त है । इस से इतना स्पष्ट है कि कात्य वा कात्यायन का मूल पुरुष 'कत' है। अनेक कात्यायन-प्राचीन वाङमय में अनेक कात्यायनों का १० उल्लेख मिलता है । एक कात्यायन कौशिक है, दूसरा आङ्गिरस है, तीसरा भार्गव है, और चौथा द्वयामुष्यायण है। चरक सूत्रस्थान १२१० में एक कात्यायन स्मत है। यह शालाक्य तन्त्र का रचयिता है। कौटिल्य अर्थशास्त्र समयाचारिक प्रकरण अधि० ५ ० ५ में भी एक कात्यायन स्मृत है । याज्ञवल्क्य-पुत्र कात्यायन-स्कन्द पुराण नागर खण्ड अ० १३० श्लोक ७१ के अनुसार एक कात्यायन याज्ञवल्क्य का पुत्र है। इसने वेदसूत्र की रचना की थी। स्कन्द में ही इस कात्यायन को यज्ञविद्याविचक्षण भी कहा है, और उसके वररुचि नामक पुत्र का उल्लेख किया है। याज्ञवल्क्य-पुत्र कात्यायन ने ही श्रौत, गृह्य, धर्म और २० शुक्लयजुःपार्षत् आदि सूत्रग्रन्थों की रचना की है। यह कात्यायन कौशिक पक्ष का है। इसने वाजसनेयों की प्रादित्यायन के छोड़कर ५ १. वाररुचं काव्यम् । २. द्र० आगे स्वर्गारोहणकाव्य के प्रसङ्ग में उद्धरिव्यमाण श्लोक । ३. कथासरित्सागर लम्बक १, तरङ्ग २, श्लोक ६६-७० । ४. अष्टाङ्गहृदय, वाग्भट्ट-विमर्श, पृष्ठ १७ । .. ५. अयमुच्चः सिञ्चतीति कात्यायनः । आदित: अ० ६५ । '६. कात्यायनसुतं प्राप्य वेदसूत्रस्य कारकम् । ७. कात्यायनाभिधं च यज्ञविद्याविचक्षणम् । पुत्रो वररुचिर्यस्य बभूव गुणसागरः॥ अ० १३१, श्लोक ४८, ४६ । ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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