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________________ ४१ अष्टाध्यायी के वार्तिककार ३२१ २ हेमचन्द्र,' हरदत्त, सायण' और नागेश प्रभृति विद्वान वार्तिककार के लिए वाक्यकार शब्द का प्रयोग करते हैं । कातन्त्र - दुर्गवृति की दुर्गटीका में वाक्यकार शब्द का प्रयोग वार्तिककार के लिए मिलता है । परन्तु वह वार्तिक पाणिनीय तन्त्र सबन्धी नहीं है । वाक्यकरण - हेमहंसगणि' श्री गुणरत्नसूरि वार्तिककारोक्त ५ धातु के लिए वाक्यकरणीय शब्द का प्रयोग करते हैं । वाक्यार्थविद् - भट्ट नारायण ने गोभिल गृह्यसूत्र ३ | १०१६, तथा ४।१।२१ के भाष्य में 'वाक्यार्थविद्' के नाम से दो वचन उद्धृत किए हैं। इन में से प्रथम कात्यायन विरचित कर्मप्रदीप ( ३|१|१६ ) में उपलब्ध होता है । कात्यायन ने लिए प्रयुक्त वाक्यकार पद के १० साथ वाक्यार्थविद् शब्द की तुलना करनी चाहिये । पदकार - सांख्यसप्तति की युक्तिदीपिका टीका में वार्तिककार के लिये पदकार शब्द का प्रयोग मिलता है ।" पदकार शब्द का प्रयोग महाभाष्यकार पतञ्जलि के लिए होता है, यह हम भाष्यकार १५ पतञ्जलि के प्रकरण में लिखेंगे। हमारा विचार है कि युक्तिदीपिका में उद्धृत वचन कात्यायन का वार्तिक नहीं है, महाभाष्यकार पतञ्जलि का वचन हैं । न्यासकार ने भी ३।२।१२ में पदकार के नाम से एक वचन १. सौत्राश्चुलुम्पादयश्च वाक्यकारीया घातव उदाहार्या: । हैम -- धातु- २० पारायण के अन्त में पृष्ठ ३५७ । २. यद्विस्मृतमदृष्टं वा सूत्रकारेण तत्स्फुटम् । वाक्यकारो ब्रवीत्येवं तेना दृष्टं च भाष्यकृत् ॥ पदमञ्जरी 'अथ शब्दा० ' भाग १, पृष्ठ ७ । ३. चुलुम्पादयो वाक्यकारीया: । धातुवृत्ति, पृष्ठ ४०२ । ४. वाक्यकारो वार्तिकमारभते । भाष्यप्रदीपोद्योत ६ । १।१३५॥ ५. तस्माद् वाक्यकार आह— बी श्रमविभाषा । मञ्जूषा पत्रिका वर्ष ४, अंक १, पृष्ठ १६ पर उद्धृत । ६. एव लौकिकवाक्यकरणीयानाम् | न्याय -संग्रह, पृष्ठ १२२ ॥ अथ वाक्यकरणीया: ...... वही, पृष्ठ १३० । ७. चुलुम्पादयो वाक्यकरणीयाः । क्रियारत्नसमुच्चय, पृष्ठ २८४ । ८. पदकारश्चाह----जातिवाचकत्वात् । पृष्ठ ७ । तुलना करो — दम्भेर्हल्• ग्रहणस्य जातिवाचकत्वात् । वार्तिक १।२।१० ॥ २५
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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