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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
दयानन्द सरस्वती ने स्वीय ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका' में वार्तिकों के लिए 'भाष्यसूत्र' पद का प्रयोग किया है । हर्षवर्धनकृत लिङ्गानुशासन की टीका में वार्तिक' पद का अर्थ ही भाष्यसूत्र लिखा है।'
भाष्यसूत्र पद का अर्थ-जिन सूत्रों पर भाष्यग्रन्थ लिखे जाएं, ५ अथवा जो भाष्यग्रन्थों के मूलभूत आधार वाक्यरूप सूत्र हों, उन्हें 'भाष्यसूत्र' कहा जाता है।
अनुतन्त्र-भर्तृहरि ने वाक्यपदीय ब्रह्मकाण्ड की स्वोपज्ञ टीका में वार्तिको को 'अनुतन्त्र' नाम से उद्धृत किया है ।'
अनुस्मृति-सायण ने धातुवृत्ति में वार्तिकों के लिये 'अनुस्मृति' १० शब्द का व्यवहार किया है।'
अनुतन्त्र और अनुस्मृति शब्दों में तन्त्र और स्मृति शब्द से पाणिनीय शास्त्र अभिप्रेत है । यतः वार्तिक उस का अनुगमन करते हैं, अतः उन के लिए अनुतन्त्र और अनुस्मृति शब्दों का व्यवहार होता
वार्तिककार==वाक्यकार भर्तृहरि, कुमारिल, जिनेन्द्रबुद्धि, क्षीरस्वामी, हेलाराज,
१. अर्थगत्यर्थ: शब्दप्रयोग इति भाष्यसूत्रम् । वैदिकलोकिकसामान्यविशेषनियम प्रकरण, पृष्ठ ३७६, तृ० सं० ।
२. 'वार्तिकं भाष्यसूत्राणि ।' नपुं० प्रकरण कारिका ४४, श पुस्तक का २० पाठान्तर। . ३. अनुतन्त्रे खल्वपि --सिद्धे शब्दार्थसम्बन्धे इति । पृष्ठ ३५, लाहौर संस्क०। ४. अनुस्मृती कारशब्दस्य स्थाने करशब्द: पठ्यते । पृष्ठ ३० ।
५. एषा भाष्यकारस्य कल्पना, न वाक्यकारस्य । महाभाष्यदीपिका, हस्त० पृष्ठ १६२, पूना सं० पृष्ठ १२३ । यदेवोक्त वाक्यकारेण वृत्तिसम
वायार्थ उपदेशः । महाभाष्यदीपिका, हस्त० पृष्ठ ११६, पूना सं० पृष्ठ १२ । २५ ६. धर्माय नियमं चाह वाक्यकारः प्रयोजनम् । तन्त्रवातिक ११३॥ पृष्ठ २७८, पूना सं०।
७. न्यास ६॥२॥११॥ ८. सौत्राश्चुलुम्पादयश्च वाक्यकारीया घातवः । क्षीरत० पृष्ठ ३२२ (हमारा संस्करण)।
६. वाक्यपदीय टीका काण्ड ३, पृष्ठ २, १२, २७ आदि, काशी संस्क० ।