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________________ अष्टाध्यायी के वात्तिककार ३१६ भाष्यसूत्र, अनुतन्त्र, और अनुस्मृति शब्दों का व्यवहार होता है । यथा वाक्य-वातिकों के लिए स्वतन्त्ररूप से वाक्य पद का निर्देश कैयट के महाभाष्यप्रदीप में दो स्थानों पर, न्यास' तथा देवकृत दैव' में एक एक स्थान पर उपलब्ध होता हैं। हां, वार्तिककार के लिए ५ वाक्यकार पद का प्रयोग तो असकृत् उपलब्ध होता है।' वाक्य पद का अर्थ-वार्तिक के लिए वाक्य पद का प्रयोग सम्भवतः इसलिए होता है कि सूत्रों में क्रिया-पद का प्रयोग नहीं होता । अतः उन में वाक्यत्व लक्षण व्याप्त नहीं होता। वार्तिकों में प्रायः क्रिया-पद भी प्रयुक्त होता है। अतः उन में वाक्यत्व का लक्षण १० भले प्रकार उपपन्न हो जाता है, अर्थात् वातिक सूत्रवत् संक्षिप्त वचन न होकर वाक्यरूप विस्तृत हैं। व्याख्यान-सूत्र-व्याख्यानसूत्र पद का प्रयोग केवल कैयट के महाभाष्यप्रदीप में उपलब्ध होता है।' व्याख्यानसूत्र का अर्थ-जिन सूत्रों का व्याख्यान किया जाए, वह १५ 'व्याख्यानसूत्र' कहाते हैं। वार्तिकों पर भाष्यरूपी व्याख्यान ग्रन्थ लिखे गए, अतः इन्हें 'व्याख्यानसूत्र' कहा जाता है । ___ भाष्यसूत्र-भर्तृहरि ने महाभाष्यदीपिका" में, तथा स्वामी १. सूत्रव्याख्यानार्थत्वाद् वाक्यानाम् ....."। ६॥३॥३४॥ तुल्यविचारत्वाद् भाष्ये त्रिसूत्री पठित्वा वाक्यं पठितम्--सपुकानामिति । ८।३॥५॥ २० २. भाष्यं कात्यायनेन प्रणीतानां वाक्यानां विवरणं पतञ्जलिप्रणीतम् । पृष्ठ १। ३. उपलम्भे शपेक्यिात् । श्लोक १३१ । ४. द्रष्टव्य--अगला प्रकरण 'वातिककार वाक्यकार'। .. ५. एकतिङ् वाक्यम् । महा० २।१३१॥ ६. व्याख्यानसूत्रेषु लाघवाऽनादरात् । कयट, महाभाष्यप्रदीय ८।२।६॥ २५ इसी पर नागेश लिखता है—व्याख्यानसूत्रेष्विति वार्तिकेष्वित्यर्थः। ___७. भाष्यसूत्रे गुरुलाघवस्यानाश्रितत्वात्, लक्षणप्रपञ्चयोस्तु मूलसूत्रेऽप्याश्रयणाद् इहापि लक्षप्रपञ्चाभ्यां प्रवृतिः। हस्तलेख पृष्ठ ४८; पूना सं० पृष्ठ ३६ । न च तेषु भाष्यसूत्रेषु गुरुलघुभावं प्रति यत्न: कियते । तथा [हि]नहीदानीमाचार्याः सूत्राणि कृत्वा निर्वतयन्ति इति ॥ भाष्यसूत्राणि हि लक्षणप्र. ३० पञ्चाभ्यां समर्थतराणि । हस्तलेख पृष्ठ २८१, २०२; पूना सं० पृष्ठ २२३ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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