________________
३१८ . संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ___ यह वार्तिक लक्षण अधिकांश रूप में कात्यायनीय वार्तिकों पर भी घटता है।
वैयाकरणीय वार्तिक पद का अथ - वैयाकरण निकाय में 'व्याकरण शास्त्र की प्रवृत्ति के लिए वृत्ति ५ शब्द का व्यवहार होता है । यथा
का पुनर्वृति: ? शास्त्रप्रवृत्तिः।' निरुक्त २ । १ के 'संशयवत्यो वृत्तयो भवन्ति' वाक्य में भी वृत्ति शब्द का अर्थ व्याकरणशास्त्र प्रवृत्ति ही है । . कात्यायन ने भी वृत्ति शब्द का यही अर्थ स्वीकार करके लिखा
तत्रानुवृत्तिनिर्दशे सवर्णाग्रहणम् अनणत्वात्' । इस की व्याख्या में कैयट लिखता हैवृत्तिः शास्त्रस्य लक्ष्ये प्रवृत्तिः, तदनुगतो निर्देशोऽनुवृत्तिनिर्देशः ।
शास्त्रप्रवृत्ति की वास्तविक प्रतीति केवल सूत्रों से नहीं होती। १५ उस के लिए सूत्रव्याख्यान की अपेक्षा होती है । इसलिए सूत्रों के लघु
व्याख्यान ग्रन्थ, जिन में पदच्छेद विभक्ति अनुवृत्ति उदाहरण प्रत्युदाहरण आदि द्वारा सूत्र के तात्पर्य को व्यक्त किया जाता है, को भी वृत्ति कहा जाता है । इसी दृष्टि से मूलभूत शब्दानुशासन के लिए
वृत्तिसूत्र पद का व्यवहार होता है। २० वृत्ति शब्द के उक्त अर्थ के प्रकाश में 'वार्तिक' पद का अर्थ होगा
वृत्तेाख्यानं वार्तिकम् । अर्थात् जो वृत्ति का व्याख्यान हो, वह 'वार्तिक' कहाता है।
वैयाकरणीय वार्तिकों की सूक्ष्म विवेचना से भी यही बात व्यक्त होती है, कि उनकी की मीमांसा का आधारभूत विषय वृत्ति शास्त्र
२५ प्रवृत्ति ग्रन्थ हैं।
वार्तिकों के अन्य नाम वातिकों के लिए वैयाकरण वाङ् मय में वाक्य, व्याख्यान-सूत्र, १. महा० अ० १, प्रा० १ के अन्त में। २. महा० ११, अ इ उण्
३. द्र०--पूर्व पृष्ठ २४०, २४१ ।
सूत्रभाष्य।