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आठवां अध्याय अष्टाध्यायी के वार्त्तिककार
( २८०० विक्रम पूर्व )
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पाणिनीय अष्टाध्यायी पर अनेक आचार्यों ने वार्तिकपाठ रचे थे । उन के ग्रन्थ इस समय अनुपलब्ध हैं। बहुत से वार्तिककारों के नाम भी अज्ञात हैं । महाभाष्य में अनेक अज्ञातनामा आचार्यो के वचन 'अपर ग्राह' निर्देशपूर्वक उल्लिखित हैं । वे प्रायः पूर्वाचार्यों के वार्तिक हैं । पतञ्जलि ने कहीं-कहीं वार्तिककारों के नामों का निर्देश भी किया है, परन्तु बहुत स्वल्प । महाभाष्य में निम्न वार्तिक१० कारों के नाम उपलब्ध होते हैं
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२. भारद्वाज ।
५. बाडव ।
१. कात्य वा कात्यायन । ३. सुनाग । ४. क्रोष्टा । इनके अतिरिक्त निम्न दो वार्तिककारों के नाम महाभाष्य की टीकाओं से विदित होते हैं६. व्याघ्रभूति ।
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७. वैयाघ्रपद्य ।
वार्तिक नाम से व्यवहृत ग्रन्थों के दो प्रकार - एक वार्तिक वे हैं, जिन की रचना सूत्रों पर हुई, और उन पर भाष्य रचे गये । इसी लिये कात्यायनीय वार्तिकों के लिये भाष्यसूत्र शब्द का व्यवहार होता है । यह प्रकार केवल व्याकरणशास्त्र में उपलब्ध होता है । दूसरे २० वार्तिक ग्रन्थ वे हैं, जिन की भाष्यों पर रचना की गई । जैसे न्यायभाष्यवार्तिक ।'
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वार्तिक का लक्षण
पराशर उपपुराण में वार्तिक का निम्न लक्षण लिखा हैउक्तानुक्तदुरुक्तानां चिन्ता यत्र प्रवर्तते ।
तं ग्रन्थं वातिकं प्राहुवासिकज्ञा मनीषिणः ॥'
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१. इसी प्रकार शाबरभाष्य पर कुमारिल के श्लोक वार्तिक, तन्त्रवार्तिक । शंकर के बृहदारण्यक आदि भाष्यों पर सुरेश्वराचार्य के वार्तिक ग्रन्थ ।
२. तुलना करो - उक्तानुक्तदुरुक्तचिन्ता वार्तिकम् । काव्यमीमांसा पृष्ठ ५ ।