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संग्रहकार व्याडि
पारम्भिक श्लोक में प्राचार्य शौनक को नमस्कार किया है। आर्षग्रन्थों में इस प्रकार नमस्कार की शैली उपलब्ध नही होती है। अतः . यह श्लोक या तो किसी शौनकभक्त ने मिलाया होगा, या यह ग्रन्थ अर्वाचीन व्याडिकृत होगा।
६. कोश-व्याडि के कोश के उद्धरण कोशग्रन्थों की अनेक ५ टीकाओं में उपलब्ध होते हैं। यह कोश विक्रम-समकालिक अर्वाचीन व्याडि का बनाया हुआ है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं। इस का नाम उत्पलिनी था, ऐसा गुरुपद हालदार का मत है।'
इस अध्याय में हमने महावैयाकरण व्याडि और उस के 'संग्रह' अन्य का संक्षिप्त वर्णन किया है । अगले अध्याय में अष्टाध्यायी के १० वार्तिककारों के विषय में लिखा जाएगा।
२. पृष्ठ ३००, पं०-२४ ।
- १. पृष्ठ ३०२, टि० २। । ३. बृहत्त्रयी, पृष्ठ ६८ । ..