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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
दश अध्याय थे । उसका वर्णन हम 'पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित आचार्य' नामक प्रकरण में पूर्व पृष्ठ १४३ पर कर चुके हैं। .
२. बलचरित-महाराज समुद्रगुप्त विरचित कृष्णचरित के मुनिकवि-वर्णन के जो दो श्लोक पूर्व पृष्ठ ३०३ पर उद्धृत किये हैं, उनसे स्पष्ट है कि व्याडि प्राचार्य ने बल-बलराम-चरित का निर्माण करके भारत और व्यास को भी जीत लिया था।
आचार्य व्याडि के काव्य के लिये देखिए इस ग्रन्थ का 'काव्यशास्त्र कार वैयाकरण कवि' शीर्षक अध्याय ३० ___ अत्रिदेव विद्यालंकार लिखते हैं-'मीमांसकजी...'व्याडि का समय भारतयुद्ध के पीछे २००-३०० वर्ष मानते हैं, जो अभी तक मान्य नहीं, क्योंकि काव्यरचना में अश्वघोष या कालिदास ही प्रथम माने जाते हैं........"
प्रत्येक भारतीय इतिहास के ज्ञान से शून्य पाश्चात्त्य विद्वानों के प्रस्थापित मतों को आंख मीच कर लिखने वाला व्यक्ति ऐसी ही ऊट१५ पटांग बातें लिखेगा।
३. परिभाषा-पाठ-व्याडि ने किसी परिभाषापाठ का प्रवचन किया था, इसके अनेक प्रमाण विभिन्न ग्रन्थों में मिलते हैं। कई एक परिभाषापाठ के हस्तलेख व्याडि के नाम से निर्दिष्ट विभिन्न पुस्तकालयों में विद्यमान हैं।
व्याडि-प्रोक्त परिभाषापाठ के विषय में इस ग्रन्थ के अध्याय २६ में विस्तार से लिखा है । अतः इस विषय में वहीं देखें।
४. लिङ्गानुशासन-व्याडिकृत, लिङ्गानुशासन का उल्लेख वामन, हर्षवर्धन' तथा हेमचन्द्र के लिङ्गानुशासनों में मिलता है।
इसका विशेष वर्णन हमने अध्याय २५ में किया है। ५ ५. विकृतिवल्ली-विकृतिवल्ली संज्ञक ऋग्वेद का एक परिशिष्ट उपलब्ध होता है। वह प्राचार्य व्याडिकृत माना जाता है । उसके
१. आयुर्वेद का बृहद् इतिहास, पृष्ठ ४०० । २. यद् व्याडिप्रमुखः, पृष्ठ १, २। व्याडिप्रणीतमथ, पृष्ठ २० ।
३. व्याडे: शङ्करचन्द्रयोर्वररुचे विद्यानिधेः पाणिनेः । कारिका ६७ ॥ ३० ४. हैम लिङ्गानुशासन विवरण, पृष्ठ १०३ ।