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संग्रहकार व्याडि
उस का संकेत व्याडिविरचित संग्रह ग्रन्थ की ओर मानना अनुचित है। क्या प्राचीन काल में अन्य भी संग्रह ग्रन्थ थे ? ___ संग्रह के नाम से अन्य ग्रन्थों के उद्धरण-सायण ने अपने वेदभाष्यों में अनेक स्थानों पर स्वविरचित जैमिनीयन्यायाधिकरणमाला के श्लोक 'संग्रह' के नाम से उदधत किये हैं। अतः संग्रह नाम से ५ उद्धत सब वचनों को व्याडिकृत संग्रह के वचन नहीं समझना चाहिए।
संग्रह का लोप-भर्तृहरि वाक्यपदीय के द्वितीय काण्ड के अन्त में लिखता हे
प्रायेण संक्षेपरुचीन अल्पविद्यापरिग्रहान् । संप्राप्य वैयाकरणान् संग्रहेऽस्तमुपागते ॥ ४८४ ॥ कृतेऽथ पतञ्जलिना गुरुणा तीर्थदर्शिना ।
सर्वेषां न्यायबीजानां महाभाष्ये निबन्धने ॥ ४८५ ॥ इस उद्धरण से विदित होता है कि संग्रह जैसे महाकाय ग्रन्थ के दठन-पाठन का उच्छेद पतञ्जलि से पूर्व ही हो गया था, और शनैः १५ शनैः ग्रन्थ भी नष्ट हो रहे थे । भर्तृहरि ने वाक्यपदीय की स्वोपज्ञटीका में संग्रह के कुछ उद्धरण दिए हैं।' अतः उसके काल तक संग्रह ग्रन्थ पूर्ण वा खण्डित रूप में अवश्य विद्यमान था । भट्ट वाण ने भी हर्षचरित में संग्रह का उल्लेख किया है। उससे बाण के काल में उसकी सत्ता में अवश्य प्रमाणित होती है। परन्तु न्यासकार जैसे २. प्राचीन ग्रन्थकार द्वारा 'संग्रह' का उल्लेख न होना सन्देहजनक है। बाण और न्यासकार के काल में अधिक अन्तर नहीं है। हेलाराज ने प्रकीर्णकाण्ड की टीका में 'संग्रह' का एक लम्बा वचन उदधत किया है। यदि उसने वह उद्धरण किसी प्राचीन टीकाग्रन्थ से उदधत न किया हो, तो ११ वीं शताब्दी तक संग्रह ग्रन्थ के कछ अंशों की विद्य- २५ मानता स्वीकार करनी होगी।
अन्य ग्रन्थ १. व्याकरण-व्याडि ने एक व्याकरणशास्त्र रचा था, उस में १. देखो पूर्व पृष्ठ ३०८-३०६, संख्या १-१० तक उद्धरण ।
२. सुकृतसंग्रहाभ्यासगुरवो लब्धसाधुशब्दा लोक इव व्याकरणेऽपि । उच्छ- ३. वास ३, पृष्ठ ८७। ३. देखो पूर्व पृष्ठ ३०६, संख्या १२ का उद्धरण । ।