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________________ संग्रहकार व्याडि ३०५ वस्तुतः प्राचीन काल में एक-एक विषय पर ग्रन्थ लिखने की परिपाटी थी। प्राचीन ग्रन्थाकार स्वप्रतिपाद्यविषय से भिन्न विषय में हस्तक्षेप नहीं करते थे। इसलिये चरक सुश्रुत में रसचिकित्सा का विधान नहीं है। मीमांसक व्याडि कृष्णचरित में व्याडि को 'मीमांसकाग्रणी' लिखा । अतः सम्भव है कि व्याडि ने मीमांसाशास्त्र पर भी कोई ग्रन्थ लिखा हो । जैमिनि प्राकृति को पदार्थ मानता है। महाभाष्य १।२।६४ में व्याडि को द्रव्यपदार्थवादी लिखा है। इससे स्पष्ट है कि व्याडि 'द्रव्यपदार्थवादी मीमांसक' रहा होगा । महाभाष्य में काशकृत्स्न- १. प्रोक्त मीमांसा का उल्लेख मिलता है। वह द्रव्यपदार्थवादी था वा प्राकृतिपदार्थवादी, यह अज्ञात है। काल व्याडि का उल्लेख गृहपति शौनक ने अपने ऋक्प्रातिशाख्य में अनेक स्थानों पर किया है। गहपति शौनक ने ऋक्प्रातिशाख्य का १५ प्रवचन भारतयुद्ध के लगभग १०० वर्ष पश्चात् किया था, यह हम पूर्व लिख चके हैं। व्याडि अपर नाम दाक्षायण पाणिनि का मामा था, यह भी पूर्व लिखा जा चुका है। अतः व्याडि का काल भारतयुद्ध के पश्चात् १००-२०० वर्षों के मध्य है। संग्रह का परिचय २० महाभाष्य २।३।६६ में लिखा है शोभना खलु दाक्षायणस्य संग्रहस्य कृतिः । . अर्थात् दाक्षायणविरचित संग्रह की कृति मनोहर है। १. तेषामभिव्यक्तिरभिप्रदिष्टा शालाक्यतन्त्रेषु चिकित्सितं च । पराधिकारे तु न विस्तरोक्तिः शस्तेति तेनात्र न न: प्रयासः ॥ चरक चिकित्सा० २६॥ २५ १३०.१३१॥ २. प्राकृतिस्तु क्रियार्थत्वात् । मीमांसा ॥३॥३३॥ ___३. द्रव्याभिधानं व्याडिः। ४. ४।१।१४, ६३; ४।३।१५५।। ५. पूर्व पृष्ठ २१७, टि०८। ६. पूर्व पृष्ठ २१६ । ७. पूर्व पृष्ठ १९८-१६६ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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