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________________ संग्रहकार व्याडि. . ३०३ व्याडि का वर्णन महाराज समुद्रगुप्त ने अपने कृष्णचरित की प्रस्तावना के अन्तर्गत मुनिकविवर्णन में लिखा है रसाचार्यः कविाडि: शब्दब्रह्म कवाङमुनिः । दाक्षिपुत्रवचोव्याख्यापटुर्मीमांसकाग्रणीः ॥१६॥ बलचरितं कृत्वा यो जिगाय भारतं व्यासं च । महाकाव्यविनिर्माणे तन्मार्गस्य प्रदीपमिव ॥१७॥ इन श्लोकों से विदित होता है कि संग्रहकार व्याडि दाक्षीपुत्रवचन (अष्टाध्यायी) का व्याख्याता, रसाचार्य और श्रेष्ठ मीमांसक था। उसने बलरामचरित लिख कर व्यास और भारत को जोत १० लिया था, अर्थात् उसका बलचरित भारत से भी महान् था। - रसाचार्य-कृष्णचरित के उपर्युक्त उद्धरण में व्याडि को रसाचार्य कहा है। वाग्भट्ट ने रसरत्नसमुच्चय के प्रारम्भ में प्राचीन रसाचार्यों में व्याडि का उल्लेख किया है।' पार्वतीपुत्र नित्यनाथसिद्ध-विरचित रसरत्न के वादिखण्ड उपदेश १, श्लोक ६६-७० में १५ २७ प्राचीन रसाचार्यों के नाम लिखे हैं, उन में सब से प्रथम नाम 'व्यालाचार्य' है। ड-ल का अभेद होने से सम्भव है, यहां शुद्धपाठ व्याड्याचार्य हो । रामराजा के रसरत्नप्रदीप में भी व्याडि का उल्लेख मिलता। गरुड पुराण में रसाचार्य व्याडि-पं० रामशंकर भट्टाचार्य का 'रसाचाय व्याडि का पौराणिक निर्देश' शीर्षक एक टिप्पण वेदवाणी मासिक-पत्रिका के वर्ष १०, अङ्क ६, पृष्ठ २० पर प्रकाशित हुआ है। उस में गरुड पुराण पूर्वार्ध अ० ६६, श्लोक ३५-३७ उद्घत करके बताया है कि व्याडि का रसाचर्यत्व पुराण साहित्य में भी प्रसिद्ध है । वे श्लोक इस प्रकार हैं १. इन्द्रदो गोमुखश्चैव काम्बलिाडिरेव च । १॥३॥ • २. रसरत्नसमुच्चय में भी २७ रसाचार्यों का उल्लेख है। ३. कलायस्त्रिपुट: प्रोक्तः सतीलो वर्तु लो मतः । हरेणु कण्टका ज्ञेयेति व्याडिरिति भरतः। हिस्ट्री आफ दी इण्डियन मेडिशन, पृष्ठ ७५८, ७५६ में उदघृत।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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