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________________ ३०२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ५ दाक्षायण देश-दाक्षि तथा दाक्षायणों का कुल बहुत विस्तृत और समृद्ध था । वह कुल जहां बसा हुआ था, वह स्थान (देश) दाक्षक' और दाक्षायणभक्त' के नाम से प्रसिद्ध था । काशिका ४।२।१४२ में 'दाक्षिपलद, दाक्षिनगर, दाक्षिग्राम, दाक्षिहद, दाक्षिकन्या'' संज्ञक ग्रामों का उल्लेख है। काशिका के अनुसार ये ग्राम वाहिक =सतलज और सिन्धु के मध्य थे । काशिका ६।२।८५ में 'दाक्षिघोष, दाक्षिकट, दाक्षिपल्वल, दाक्षिह्नद, दाक्षिबदरी, दाक्ष्यश्वत्थ, दाक्षिशाल्मली, दाक्षिपिङ्गल, दाक्षिपिशङ्ग, दाक्षिरक्ष, दाक्षिशिल्पी, दाक्षिपुस, दाक्षिकूट' का निर्देश मिलता है। - व्याडिशाला-पाणिनि ने अष्टाध्यायी ५।२।८६ के छात्र्यादिगण में व्याडि पद का निर्देश किया है । तदनुसार शाला उत्तरपद होने पर 'व्याडिशाला' पद आद्य दात्त होता है । यहां शालाशब्द पाठशाला का वाचक है, यह हम आपिशालिशाला के प्रकरण में लिख चुके हैं।' व्याडिशाला की प्रसिद्धि-काशिका ६।२।६९ में लिखा है१५ कुमारीदाक्षाः । कुमार्यादिलाभकामाः ये दाक्ष्यादिभिः प्रोक्तानि शास्त्राण्यधीयते तच्छिष्यतां वा प्रतिपद्यन्ते त एवं क्षिप्यन्ते । अर्थात् जो कुमारी की प्राप्ति के लिए दाक्षिप्रोक्त शास्त्र का अध्ययन करते हैं, अथवा उसकी शिष्यता स्वीकार करते हैं, वे पूर्व पदान्तोदात्त कुमारीदाक्ष पद से आक्षिप्त किए जाते हैं।' २. पाणिनि के द्वारा ६।२।८६ में दाक्षिशाला का निर्देश होने से तथा काशिका के उपर्युक्त उद्धरण से स्पष्ट है कि प्राचार्य व्याडि का विद्यालय उस समय अत्यन्त प्रसिद्धि को प्राप्त हो चुका था । १. दाक्षि+अक्, राजन्याभ्यिो वुन् । अष्टा० ४।२।५३॥ २. दाक्षि+भक्त, भौरिक्याद्येषकार्यादिभ्यो विघल्भक्तलो। अष्टा० ४। ३. दाक्षिग्राम: ... दाक्ष्यादयो निवसन्ति यस्मिन् ग्रामे स तेषापिति व्यपदिश्यते । काशिका ६।२॥४॥ ४. ग्रामविशेषस्य संज्ञा । वामनीय लिङ्गानुशासन। पृष्ठ , पं० २६ । ५. पञ्चानां सिन्धुषष्ठानामन्तरं ये समश्रिताः । वाहिका नाम ते देशाः ...... । महाभारत कर्णपर्व, महाभाष्यप्रदीपोद्योत १३१।७५ में उदधृत । ६. पृष्ठ १४८ । ७. तुलना करो-'अजर्घा यो न जानाति यो न जानाति वर्वरीः । अचीकमत् यो न जानाति तस्मै कन्या न दीयते ॥ किंवदन्ती। २५ २०५४॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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