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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
इसके कोश के अनेक उद्धरण कोशग्रन्थों की टीकाओं में उपलब्ध होते हैं | आचार्य हेमचन्द्र के निर्देशानुसार व्याडि के कोश में २४ बौद्ध जातकों के नाम मिलते हैं ।' अतः यह महात्मा बुद्ध से उत्तरवर्ती है, यह स्पष्ट है । प्रसिद्ध मुसलमान यात्री अल्बेरूनी ने एक रसज्ञ व्याडि का उल्लेख किया है ।
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दाक्षायण - इस नाम का उल्लेख महाभाष्य २।३।६६ में मिलता है । मैत्रायणी संहिता १८६ में दाक्षायणों का निर्देश है ।
दर्शपौर्णमास की प्रवृत्तिरूप एक इष्टि भी दाक्षायण इष्टि कहाती है । क्या इस इष्टि का इस दाक्षि अथवा दाक्षायण से कुछ सम्बन्ध है ?
दाक्षि- वामन ने काशिका ६।२।६९ में इस नाम का उल्लेख किया है । मत्स्य पुराण १६५।२५ में दाक्षि गोत्र का निर्देश उपलब्ध हो है ।
यद्यपि दाक्षि और दाक्षायण नामों में गोत्र और युव प्रत्यय के भेद से अर्थ की विभिन्नता प्रतीत होती है, तथापि पाणिन और १५ पाणिनि, तथा काशकृत्स्न और काशकृत्स्नि आदि के समान दोनों नाम एक ही व्यक्ति के हैं । इसकी पुष्टि काशिका ४।१।१६६ के 'तत्र भवान् दाक्षायणः, दाक्षिर्वा' उदाहरण से होती है ।
वंश - व्याडि नाम से इसके पिता का नाम व्यड प्रतीत होता है । माता का नाम अज्ञात है । दाक्षि और दाक्षायण नामों से इस वंश के २० मूल पुरुष का नाम 'दक्ष' विदित होता है । मत्स्य पुराण १६५।२५
में दाक्षि को अङ्गिरा वंश का कहा है । न्यासकार जिनेन्द्रबुद्धि के लेखानुसार व्याडि दाक्षायण का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था । स्वसा - पाणिनि ने क्रौड्यादि गण में व्याडि का निर्देश किया
१. अभिधानचिन्तामणि देवकाण्ड, श्लोक १४७ की टीका, पृष्ठ १००, २. पूर्व पृष्ठ २६८, टि०६ । ३. एतद्ध स्म वा आहुर्दाक्षायणास्तन्तून्त्समवृक्षद् गामन्वव्यावर्तयेति । ४. कुमारीदाक्षाः ।
५. कपितरः स्वस्तितरो दाक्षिः शक्तिः पतञ्जलिः ।
६. ब्राह्मणगोत्रप्रतिषेधादहि न भवति - दाक्षायण इति । न्यास २|४|१८, ३० पृष्ठ ४७० ।
७. अष्टा० ४।११८०॥
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